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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [११], --------------- उद्देशक: -1, -------------- दारं -1, -------------- मूलं [१६३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: ११भाषा प्रत सूत्रांक [१६३] प्रज्ञापनाया: मलय० वृत्ती. RSee ॥२५॥ दीप अनुक्रम [३७७]] सस्टरseeeeeeee णो इणडे समढे, पणत्थ सणिणो, अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति अयं मे अतिराउलो अयं मे अइराउलेत्ति ?, गो०! णो तिणढे समहे, णण्णस्य सणिणो, अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति अयं मे भटिदारए अयं मे भट्टिदारियति ?, गो०! जो इणढे समढे, णणत्थ सणिणो, अह भंते ! उद्धे गोणे खरे धोडए अए एलते जाणति चुयमाणे अहमेसे बुयामि , गो० णो इणढे समढे, गण्णत्थ सणिणो, अह भंते ! उट्टे जाव एलते जाणति आहारं आहारेमाणो अहमेसे आहारेमि, गो! णो इणहे समढे जाव णण्णत्थ सणिणो, अह मंते ! उट्टे गोणे खरे घोडए अए एलए जाणति, अयं मे अम्मापियरो', गो०! गो इणहे समढे जाव णण्णत्थ सणिणो, अह भंते ! उट्टे जाव एलए जाणति, अयं मे अतिराउलेत्ति', गो०! णो इणढे समढे जाव णण्यात्थ सणिणो, अह भंते! उट्टे जाव एलए जाणति अयं मे भटिदारए २१, गोयमा! णो इणढे समढे जाव णण्णत्थ सणिणो (मूत्र १६३) 'अह भंते! मंदकुमारए या' इत्यादि, अथ भदन्त ! मन्दकुमारकः-उत्तानशयो वालको मन्दकुमारिका-उत्तान-1 शया बालिका भाषमाणा-भाषायोग्यान् पुद्गलानादाय भाषात्वेन परिणमय्य विसृजती एवं जानाति-यथाऽहमेतद् ब्रवीमि इति ?, भगवानाह-गौतम! नायमर्थः समर्थः-युक्त्युपपन्नो, यद्यपि मनःपर्याप्त्या पर्याप्तस्तथापि तस्याया- कापि मनःकरणमपटु अपद्धत्वाच मनःकरणस्य क्षयोपशमोऽपि मन्दः, श्रुतज्ञानावरणस्य हि क्षयोपशमः प्रायो मनः करणपटिष्टतामवलम्ब्योपजायते, तथा लोके दर्शनात् , ततो न जानाति मन्दकुमारो मन्दकुमारिका वा भाषमाणा ॥२५॥ SAREauratonintamanna ~108~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
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