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________________ आगम (१५) [भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१], ------------ उद्देशक: -,------------ दारं [-], ------------ मूलं [२५...] + गाथा: (८०-९२) पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२५] १ प्रज्ञापनापदे अ. नन्तप्रत्लेकलक्षणं. (सू.२५) गाथा: प्रज्ञापना चक्कागं भजमाणस्स, गंठी चुन्नधणो भवे | पुढविसरिसेण भेएण, अणंतजीव वियाणाहि ॥८०॥ गूढसिरार्ग पत्तं सच्छीर जं याः मल-श च होइ निच्छीरं । जंपिय पणहसन्धि अणंतजीवं वियाणाहि ॥८१।। पुष्फा जलया थलया य बिटबद्धा य नालबद्धा य । य. वृत्ती. संखिजमसंखिआ बोद्धवाऽणतजीवा य ॥८२॥ जे केइ नालियाबद्धा पुष्पा संखिञ्जजीविया भणिया । निहुया अणंतजीवा जे यावन्ने तहाविहा ॥८३॥ पउमुप्पलिणीकंदे अंतरकंदे तहेव झिल्ली य । एए अणंतजीवा एगो जीवो बिसमुणाले ॥४॥ ॥३६॥ पलंड्रल्हसुणकंदे य, कंदली य कुसुंबए । एए परित्तजीवा, जे यावन्ने तहाविहा ।।८५।। पउमुप्पलनलिणाण, सुभगसोगंधियाण य । अरविंदकुंकणाणं, सयवत्तसहस्सपत्ताणं ॥८६॥.बिट बाहिरपत्ता य, कनिया चेव एगजीवस्स । अम्भितरगा पत्ता पत्तेयं केसरा मिजा ।।८७|| वेणुनल इक्खुवाडिय समासइक्खू य इकडे रंटे । करकर सुठि विहंगू तणाण तह पन्चगाणं च ।।८८ अछि पन्वं बलिमोडओ य एगस्स हाँति जीवस्स । पत्तेयं पत्ताई पुष्फाई अणेगजीवाई ॥८९॥ पूसफलं कालिंगं तुंबं तउसेल एलवालुकं । घोसाढय पंडोलं तिंयं चेव तेंदूसं ॥९॥ विंटसमं सकडाई एयाई हवंति एगजीवस्स । पनेयं पत्ताई सकेसरं केसरं मिंजा ।। ९१ ।। सप्काए सज्झाए उव्वेहलिया य कुहणकंदुके । एए अणंतजीवा कंदुके होइ भयणा उ॥१२॥ (सू० २५) 'चकाग'मित्यादि, चक्रक-चकाकारं एकान्तेन समं भङ्गस्थानं यस्य भज्यमानस्य मूलकन्दस्कन्धत्वशाखापत्रपुष्पादेर्भवति तन्मूलादिकमनन्तजीवं विजानीहि इति सम्बन्धः, तथा 'गंठी जुन्नघणो भवे' इति प्रन्थिः पर्व सामान्यतो भास्थानं या स यस्य भज्यमानस्य चूर्णेन-जसा घनो-व्याप्तो भवति ॥ अथवा यस पत्रादेभेज्यमानस्य दीप अनुक्रम [१२० ceedesesereleselnews १३२] ~844
SR No.035018
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 18 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages426
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size93 MB
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