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आगम
[भाग-१८] “प्रज्ञापना" -
पदं [५], --------------- उद्देशक: -,--------------दारं --------------- मूलं [१११] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रज्ञापनायाः मलयवृत्ती.
प्रत सूत्रांक [१११]
५पर्यायपेद जघन्यावगाहनादीनां नैरयिकागांपर्यायाः सूत्रं १११
॥१८७॥
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दीप अनुक्रम [३१५]]
भंते! नेरइयाणं केवइया पजवा पाचा, गोयमा ! अर्णता पज्जवा पन्नत्ता, से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ जहन्नेठियाण नेरइयाणं अणंता पज्जवा पन्नत्ता, गोयमा! जहन्नठिइए नेरइए जहन्नठिइयस्स नेरइयस्स दबट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए चउढाणवडिए ठिईए तुल्ले वन्नगंधरसफासपञ्जवेहिं तिहिं नाणेहिं तिहिं अनाणेहिं तिहिं दसणेहिं छहाणवडिए एवं उकोसठिइएपि, अजहन्नमणुकोसठिइएवि, नवरं सहाणे चउहाणवडिए । जहन्नगुणकालगाणं भंते ! नेरइयाण केवइया पज्जवा पन्नता, गोयमा! अर्णता पज्जवा पत्रचा, से केणटेणं भंते! एवं चुच्चइ-जहन्नगुणकालगाणं नेरइयाण अर्णता पज्जवा पन्नता, गोयमा ! जहन्नगुणकालए नेरइए जहन्नगुणकालगस्स नेरइयस्स दवट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए चउवाणवडिए ठिईए चउहाणवडिए कालवन्नपञ्जवेहिं तुल्ले अवसेसेहिं वनगंधरसफासपञ्जवेहिं तिहिं नाणेहिं तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छटाणवडिए, से एएणद्वेणं गोयमा! एवं बुच्चइ जहन्नगुणकालगाणं नेरइयाणं अर्णता पञ्जवा पन्नत्ता, एवं उक्कोसगुणकालरवि, अजहन्नमणुकोसगुणकालएवि एवं चेव, नवरं कालवन्नपञ्जवेहिं छहाणवडिए, एवं अवसेसा चत्तारि बना दो गंधा पंच रसा अट्ट फासा भाणियहा । जहन्नाभिणिवोहियनाणीणं भंते ! नेरइयाण केवइया पजवा पन्नत्ता ?, गोयमा ! जहन्नाभिणियोहियनाणीण नेरइयाणं अणता पज्जवा पन्नता, से केणडेणं भंते ! एवं बुधइ जहनामिणिबोहियनाणीर्ण नेरइयाणं अणंता पज्जवा पन्नत्ता, गोयमा! जहन्नाभिणिबोहियनाणी नेरइए जहन्नाभिणिवोहियस्स नाणिस्स नेरइयस्स दवट्ठयाए तुल्ले पएसहयाए तुल्ले ओगाहणट्टयाए चउहाणवडिए ठिए चउढाणवडिए बनगंधरसफासपअवेहिं छहाणवडिए आभिणियोहियनाणपञ्जयहिं तुल्ले सुयनाण. ओहिनाणपज्जवेहिं छहाणवडिए तिहिं दसणेहि छहा
॥१८७॥
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