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________________ आगम (१५) [भाग-१८] “प्रज्ञापना" - पदं [४], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं --------------- मूलं [१०२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१०२] गोयमा ! जहन्नेणं दो सागरोवमाई उकोसेणं सत्त सागरोवमाई, अपञ्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणवि उकोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पज्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा! जहन्नेणं दो सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ।। माहिदे कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं साइरेगाई दो सागरोवमाई उक्कोसेणं साइरेगाई सत्त सागरोवमाई, अपज्जतयाणं पुच्छा गोयमा ! जहनेणवि कोसेणवि अंतोमुहुनं, पञ्जत्तयाण पुरछा गोयमा! जहनेणं दो सागरोषमाइं साइरेगाई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं सत्त सागरोबमाई साइरेगाई अंतोमुहुत्तूणाई ।। बंभलोए कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं सत्त सागरोवमाई उक्कोसेणं दस सागरोवमाई, अपज्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहनेणवि उकोसेणवि अंतोमुहुत्तं, पज्जत्तयाण पुच्छा गोयमा! जहन्नेणं सच सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उकोसेणं दस सागरोवमाई अंतोमुहुजूणाई ।। लंतए कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहनेणं दस सागरोवमाई उकोसेणं चउद्दस सागरोक्माई, अपञ्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहणपि उकोसेणवि अंतोमुहत्तं, पजत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहवेणं दस सागरोवमाई अंतोमुत्तूणाई उकोसेणं चउद्दस सागरोवमाई अंतोमुहुतूणाई ।। महासुके कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं चउद्दस सागरोबमाई उक्कोसेणं सत्तर सागरोवमाई, अपञ्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणवि उकोसेणवि अंतोमुहुर, पज्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा: जहन्नेणं चउद्दस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई उकोसेणं सत्तर सागरोवमाई अंतोमुहुनूणाई ॥ सहस्सारे कप्पे देवाणं पुच्छा गोयमा ! जहन्नेणं सत्तर सागरोचमाई उकोसेणं अहारस सागरोवमाई, अपञ्जत्तयाणं पुच्छा गोयमा! जहन्नेणवि उकोसेगवि अतोमुहुर्ग, पजत्तयाणं पुच्छा गोयमा ! जहनेणं सत्तर सागरोवमाई अंतोमहुतूणाई उकोसेणं अट्ठारस सागरोधमाई दीप अनुक्रम [३०६] ~365
SR No.035018
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 18 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages426
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size93 MB
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