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________________ आगम (१५) [भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [३], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [२५], -------------- मूलं [८६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत प्रज्ञापनायाः मलयवृत्ती. क्षेत्रानु. सूत्राक [८६] ॥१५२॥ न्द्रिया० सू.८६ दीप जगुणा तिरियलोए संखिजगुणा । खित्ताणुवाए सवयोवा तेइंदिया पजत्तया उड्डलोए उडलोयतिरियलोए असं- ३ अल्पखिजगुणा तेलुके असंखिजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणा अहोलोए संखिज्जगुणा तिरियलोए संखिज्जगुणा । बहुत्वपदे खिताणुवाएर्ण सबथोवा चउरिंदिया जीवा उडलोए उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणा तेलोके असंखिजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखिज्जगुणा अहोलोए संखिज्जगुणा तिरियलोर संखिजगुणा। खिचाणुवाएणं सबथोवा चाउरिदिया विकलेजीवा अपजत्तया उडलोए उडलोयतिरियलोए असंखिजगुणा तेलुके असंखिजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणा अहोलोए संखिजगुणा तिरियलोए संखिजगुणा । खित्ताणुवाएणं सवत्थोवा चउरिदिया जीवा पञ्जत्तया उडलोए उड्डलोयतिरियलोए असंखिजगुणा तेलोके असंखिजगुणा अहोलोयतिरियलोए असंखिजगुणा अहोलोए संखिजगुणा तिरियलोए संखिजगुणा (सू०८६) क्षेत्रानुपातेन' क्षेत्रानुसारेण चिन्त्यमाना द्वीन्द्रियाः सर्वस्तोका ऊलोके, ऊर्द्धलोकस्यैकदेशे तेषां संभवात् , तेभ्य ऊर्द्धलोकतिर्यग्लोके प्रतरद्वयरूपेऽसङ्ख्यगुणाः, यतो ये ऊर्द्धलोकात्तिर्यग्लोके तिर्यग्लोकादूई लोके वीन्द्रिय-1 त्वेन समुत्पत्तुकामास्तदायुरनुभवन्त ईलिकागत्या समुत्पद्यते ये च द्वीन्द्रिया एव तिर्यग्लोकादूर्बलोके ऊईलोकाहा । तिर्यग्लोके द्वीन्द्रियत्वेनान्यत्वेन वा समुत्पत्कामाः कृतप्रथममारणान्तिकसमुद्घाताः अत एव द्वीन्द्रियायुः प्रतिसंवेदयमानाः समुद्घातयशाच दूरतरविक्षिप्सनिजात्मप्रदेशदण्डा ये च प्रतरद्वयाध्यासितक्षेत्रसमासीनास्ते यथोक्त अनुक्रम [२९०] For P OW weredturary.com ~316~
SR No.035018
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 18 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages426
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size93 MB
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