________________
आगम
[भाग-१८] “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [२], ------------ उद्देशकः [-, ---------- दारं [-], ---------- मूलं [५३] + गाथा:(१४६-१४९) पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
CC
प्रत सूत्रांक [५३]
गाथा:
ता?, कहि णं भंते ! उबरिमगेविज्जए देवा परिवसति?, गोयमा ! मज्झिमगेविजगाणं उप्पि जाव उप्पइचा एत्थ ण उवरिमगेविनगाणं तओ गेविजगविमाणपत्थडा पन्नता पाईणपडीणायया सेसं जहा हेद्विमगेविअगाणं, नवरं एगे विमागावाससए भवन्तीतिमक्खायं, सेसं तहेव भाणियई जाव अहमिंदा नामं ते देवगणा पन्नत्ता समणाउसो!| एकारसुत्रं हेडिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए। सयमेगं उवरिमए पंचेव अणुचरविमाणा ॥१४९॥ कहिणं भंते ! अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं पजत्तापञ्जताणं ठाणा पत्रचा?, कहि ण भंते ! अणुत्तरोवाइया देवा परिवसंति',गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ उड्डे चंदिममूरियगहगणनक्खत्ततारारूवाणं चहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहुई जोयणसयसहस्साई बहुगाओ जोयणकोडीओ बहुगाओ जोयणकोडाकोडीओ उहंदूर उप्पहत्ता सोहम्मीसाणसणंकुमार जाव आरणअधुयकप्पा तिनिअट्ठारसुत्तरे गेषिजगषिमाणावाससए वीइवहत्ता तेण पर दूरंगया नीरया निम्मला वितिमिरा विसुद्धा पंचदिसि पंच अणुचरा महइमहालया महाविमाणा पन्नता, तंजहा--विजए वेजयंते जयंते अपराजिए सबट्टसिद्धे, ते ण विमाणा सबरयणामया अच्छा सोहा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पं का निकंकडच्छाया सप्पमा सस्सिरिया सउज्जोया पासाइया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं पज्जत्तापजसाणं ठाणा पन्नता, तिसुपि लोगस्स असंखेजहभागे, तत्थ णं यहवे अणुचरोववाइया देवा परिवसंति, सो समिड्डिया सो समवला सो समाणुभावा महासुक्खा अणिंदा अप्पेस्सा अपुरोहिया अहमिदा नाम ते देवगणा पन्नत्ता समणाउसो! ॥ (५०५३)
दीप अनुक्रम [२२८-२३४]
SAREairanMOM
For P
OW
~221