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________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [७], --------------------- उद्देशक: -,--------------------- मूलं [२४१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२४१] श्रीजीवा-18 जीवाभि. मलयगिरीयावृत्तिः ४७ प्रतिपत्ती प्रथमसमजयनैरयि कादिस्थित्यादि उद्देशः२ सू०२४१ ॥४२९॥ दीप अपढममणुस्स.जह खुदागं भवग्गहणं समऊणं उक्क तिन्नि पलिओवमाई पुव्यकोडिपुहसमभहियाई ॥ अंतरं पढमसमयणेरतियस्स जह• दसवाससहस्साई अंतोमुहत्तमन्भहियाई उको० वणस्सतिकालो, अपढमसमय जह० अंतोमु० उक० वणस्सतिकालो । पत्मसमयतिरिक्खजोणिए जहदो खुडागभवग्गहणाई समऊणाई उको वणस्सतिकालो, अपढमसमयतिरिक्खजोणियस्स जह० खुड्डागं भवग्गहणं समयाहियं उको सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगे । पढमसमयमणुस्सस्स जह० दो खुड्डाई भवग्गहणाई समऊणाई उको० वणस्सतिकालो, अपढमसमयमणुस्सस्स जह० खुट्टागं भवग्गहणं समयाहियं उको० वणस्सतिकालो। देवाणं जहा नेरइयाणं जह० दसवाससहस्साई अंतोमुत्तमम्भहियाई उको० वणस्सइकालो, अपढमसमय जह अंतो० उदो० वणस्सइकालो ।। अप्पाबहु० एतेसि णं भंते ! पढमसमयनेरइयाणं जाव पढमसमयदेवाण य कतरे २हिंतो०?, गोयमा! सव्यस्थोवा पहमसमयमणुस्सा पढमसमयणेरड्या असंखेजगुणा पत्मसमयदेवा असंखेजगुणा पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेजगुणा ॥ अपढमसमयनेरइयाणं जाय अपहमदेवाणं एवं चेव अप्पबह णबरि अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अर्णतगुणा । एतेसिं पढमसमयनेरइयाणं अपढमणेरतियाणं कयरे २१, सब्बत्थोवा पढमसमयणेरतिया अपढमसमयनेरइया असंखेजगुणा, एवं सब्वे ।। पढमसमयणेरइयाण जाव अपढमसमय C अनुक्रम [३६६] ॥४२९॥ ~406
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
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