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आगम
(१४)
प्रत
सूत्रांक
[२०८]
दीप
अनुक्रम
[३२५]
[भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र - ३/२ (मूलं + वृत्तिः)
------ उद्देशक: [ ( वैमानिक ) - १],
- मूलं [२०८]
प्रतिपत्ति: [३], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... आगमसूत्र [१४] उपांगसूत्र- [३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः
'हस्सीओ पन्नताओ बाहिरियाए चत्तारि देवसाहस्सीओ, अभितरियाए परिसाए अद्धसोलस सागरोवमाई पंच पलिओबमाई मज्झिमियाए अद्वसोलस सागरोवमाई चत्तारि पलिओ माई बाहिरियाए अद्धसोलस सागरोवमाई तिष्णि पलिओदमाई अट्ठो सो चैव ॥ सहस्सारे पुच्छा जाव अभितरियाए परिसाए पंच देवसया मसिमियाए परि० एगा देवसाहस्सी बाहिरियाए दो देव साहसीओ पत्ता ठिती अभितरियाए अद्धद्वारस सागरोवमाई सत्त पलिओ माई ठिती पण्णत्ता एवं मज्झिमियाए अट्ठारस छप्पलिओ माई बाहिरियाए अट्ठारस सागरोमाई पंच पलिओ माई अट्ठो सो चेव ॥ आणयपाणयस्सवि पुच्छा जाय तओ परिसाओ णवरि अभितरियाए अडाइज्जा देवसया मज्झिमियाए पंच देवसया बाहिरियाए एगा देवसाहस्सी fort अभितरियाए एगूणवीस सागरोवमाई पंच य पलिओनाई एवं मज्झि० एगोणवीस सागरोवमाई चत्तारिय पलिओ माई बाहिरियाए परिसाए एगूणवीसं सागरोवमाई तिण्णि य पलिओ माई ठिती अट्ठो सो चेव । कहि णं भंते! आरणअनुपाणं देवाणं तहेव अचुए सपरिवारे जाव विहरति, अनुयस्स णं देविंदस्स तओ परिसाओ पण्णत्ताओ अभितरपरि० दे वाणं पणवीस सयं मज्झिम० अढाइजा सया बाहिरय० पंचसया अभितरियाए एकवीसं सागरोवमा सत्त य पलिओ माई मज्झि० एकवीससागर० छप्पलि० बाहिर० एकवीसं सागरो०
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