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आगम
(१४)
[भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्तिः )
प्रतिपत्ति : [३], ---------------------- उद्देशक: [(वैमानिक)-१], --------------------- मूलं [२०८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रतिपचौ | वैमा० उद्देशा
श्रीजीवाजीवाभि मलयगिरीयावृत्तिः
प्रत
सूत्रांक [२०८]
सू०७४
दीप अनुक्रम [३२५]
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॥सकसणं भंते! देविंदस्स देवरन्नो अम्भितरियाए परिसाए कति देवसाहस्सीओ पपणत्ताओ?. मज्झिमियाए परि तहेव बाहिरियाए पुच्छा, गोयमा! सफास्स देविंदस्स देवरनो अभितरियाए परिसाए वारस देवसाहस्सीओ पण्णताओ मज्झिमियाए परिसाए चउदस देवसाहस्सीओ पपणताओ वाहिरियाए परिसाए सोलस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, तहा अम्भितरियाए परिसाए सत्स देवीसयाणि मज्झिमियाए छच्च देवीसयाणि बाहिरियाए पंच देवीसयाणि पन्नत्ताई।सकस्स णं भंते! देविंदस्सदेवरनो अभितरियाए परिसाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? एवं मज्झिमिपाए बाहिरियाएवि, गोयमा सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो अम्भितरियाए परिसाए पंच पलिओचमाई ठिती पण्णतामज्झिमियाए परिसाए चत्तारि पलिओषमाई ठिती, पण्णत्ता बाहिरियाए परिसाए देवाणं तिन्नि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता, देवीणं ठिती, अम्भितरियाए परिसाए देवीणं तिन्नि पलिओवमाइं ठिती पण्णत्तामज्झिमियाए दुन्नि पलिओवमाई ठिती पण्णत्ताबाहिरियाएपरिसाए एग पलिओवमं ठिती पण्णता, अट्ठो सो चेव जहा भवणवासीणं ॥ कहि णं भंते! ईसाणकाणं देवाणं विमाणा पण्णता? तहेव सब्वं जाव ईसाणे एत्व देविंदे देव.जाव विहरति। ईसाणस्स णं भंते। देविंदस्स देवरपणो कति परिसाओ पण्णताओ?, गोयमा! तओ परिसाओ पण्णसाओ, तंजहा-समिता चंडा जाता, तहेव सब्वं णघरं अभितरियाए परिसाए दस देवसा
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