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________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्तिः ) प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], ---------------------- मूलं [१८४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४] उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१८४] I X मुदकं यस्यासौ नन्दीश्वरोदः, एवं सर्वत्रापि समुद्रेषु द्वीपेषु च व्युत्पत्तियथायोग भावनीया । एवमेते जम्बूद्वीपादयो नन्दीवरसमुद्रपर्यवसाना एकमलावतारा उक्ताः, अत ऊर्द्ध मरुणादीन द्वीपान समुद्रांश्च प्रत्येकं त्रिप्रत्यवतारान् विवक्षुराह गंदीसरोदं समुई अरुणे णामं दीये वढे वलयागार जाव संपरिक्वित्ता णं चिट्ठति । असणे णं भंते दीये किं समचकवालसंठिले चिरूमनकवालसंठिए?, गोयमा! समचलवालसंठिमे नो विसमचकवालसंठिने, केवतियं चकवालवि० संठिने?. संखेजाई जोयणर यसहवाई चकवालविखंभेणं संखेज़ाई जोयणसयसहस्साई परिकावे वेणं पण्णत्ते, पजमबरवण दारा दारंतरा य तहेच संखेमाईजोयणसतसहस्साई दारंतरं जाव अहो. वावीओ खोनोगपटिहस्थाओ उप्पातपस्वयका सब्यवदरामया अच्छा, असोग बीतमोगा य एस्थ वे देवा सहिहीया जाब परिवसंति, से लेण जाव संग्वेजं सव्वं ॥ अमगाणं दीयं अरुणोदे णामं समुहे तस्ममि महेन्द परिक्खेवो अट्टो ग्योतोदगे णवरि सुभ समणभद्दा एस्थ दो देवा महिडीया सेसं नहेच ॥ अरुणोदगं समुई अरुणवरे णामं दीवे वट्टे चलयागारठाण तहेगा संग्वेजग सन्दं जाच अट्टो कोयोदगपटिहस्थाओ उपायपब्बनया सब्ववहरामया अच्छा, अरुणवरहरुणवरमहामहा दो देवा महिहीया । एवं अरुणवरोदेति समुहे जाग देवा अरुणवरअरुणमहावरा यस्य दोरया सेर्स तहेव ।। अरुणवरोपणं समुई अरुणवरावभासे णामं दीये बट्टे जाव देवा अरुपवराव मालमहा Ch-44544102444 दीप अनुक्रम [२९५] - mamerammarMINENTAmmymame 87-%2554- miaamwaRINTRIERIMAR 2-% ~279
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
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