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________________ आगम (१४) [भाग-१७] “जीवाजीवाभिगम” – उपांगसूत्र-३/२ (मूलं+वृत्ति:) प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], ---------------------- मूलं [१८०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...आगमसूत्र-[१४], उपांगसूत्र-३] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१८०] दीप अनुक्रम [२८९-२९१] हैम्बत् । तेसु णं पध्वयगेसु जाव पक्खंदोलगेसु बहवे हंसासणाई उन्नयासणाई पणयासणाई दीहासणाई भद्दासणाई पक्खासणाई मगरासणाई पउमासणाई सीहासणाई दिसासोवस्थियासणाई सम्वफालियामयाई अच्छाई जाव पडिरूबाई । वरुणवरस्स णं दीवस्म तत्य तत्थ देसे तहिं नहिं बहबे आलीघरगा मालीघरगा केयइधरगा अरुछणघरगा पेच्छणघरगा मजणघरगा पसाहणघरगा गत्तपरगा मोहणपरगा चित्तहरगा मालघरगा जालघरगा कुसुमघरगा सञ्चालियामया अच्छा जाव पडिरूवा । तेसु णं आलीधरएसु जाव कुसुमघरएसु वहये इंसासणाई जाव दिसासोवस्थियासणाई सम्वफालियामयाई अच्छाई जाब पडिरूवाई। वरुणवरे णं दीवेणं तस्थ २ | देसे तहिं २ बहवे जातिमंडवगा जूहियामंडवगा मल्लियामंडवगा नवमालियामंडवगा वासंतियमंडवगा दहिवासइमंडवगा सूरुल्लियामडवगा तंबोलमंडवगा अफायामंडवगा अइमुत्तमंडवगा मुद्दियामंडवगा मालुयामंङबगा सामलयामंडवगा सव्वफालिहामया अच्छा जाव पडिरूवा । तेसु णं जाइमंडवेसु जाव सामलयामंडवेसु बहबे पुढविसिलापट्टगा पन्नता, अप्पेगइया हंसासणसंठिया अप्पेगइया कोंचासणसंठिया जाब अप्पेगइया दिसासोवस्थियासणसंठिया अपपेगइया बरसायणनिसिहसंठाणसंठिया सवफालियामया अच्छा जाव पडिरूवा, तत्थ णं बहवे वाणमंतरा देवा देवीओ य आसयंति सयंति चिट्ठति निसीयंति तुबटुंति रमति ललंति कीडंति पुरापोराणाणं सुचिण्णाणं सुम्परकताणं सुभाण कडाणं कम्माणं कलाणाणं फलवित्तित्रिसेसे पञ्चणुभवमाणा बिहरंति' एतत्सर्व प्राग्वद् व्याख्येय, नवरं पुस्तके वन्यथाऽन्यथा पाठ इनि यथाऽवस्थित पाठप्रतिपत्त्यर्थ सूत्रमपि लिखितमस्ति, तदेवं यस्माद्वरवारुणीवात्र वाप्यादिपूदकं तस्मादेष द्वीपो वरुणवरः, अन्यश्च वरुण वरुणनभौ चात्र वरुणवरे द्वीपे ड्री देवौ महादिको यावत्पल्योपमस्थितिको परिवसतस्तस्माद्वरुणधरो-त्रगणदेवप्रधानः, तथा चाह-से एएणद्वेण मित्यादि । चन्द्रादिसञ्जयाप्रतिपादनार्थमाह-वरुणवरे गं दीवे कइ चंदा पभासिसु' इत्यादि Jama ~249~
SR No.035017
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 17 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages488
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size118 MB
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