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आगम (१४)
[भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" -
प्रतिपत्ति : [३], -----------------------उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], -------------------- मूलं [१३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [२] "जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [१३७]
श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः
३ प्रतिपत्ती मनुष्या० सभावर्णन उद्देशा २ सू०१३७
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॥२२५॥
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कंदवेलियातिलग्बंधा सुजातरूवपढमगविसालसाली नाणामणिरयणविविधसाहप्पसाहबेरुलियपत्ततवणिजपत्तवेंटा जंयूणयरत्तम उयसुकुमालपवालपल्लवसोभंतवरंकुरग्गसिहरा विचित्तमणिरयणसुरभिकुसुमफलभरणमियसाला सच्छाया सप्पमा समिरीया सउज्जोया अमयरससमरसफला अधियं णयणमणणिब्युतिकरा पासातीया दरिसणिजा अभिरूवा पडिरूया ॥ ते णं चेझ्याक्खा अन्नेहिं बहहिं तिलयलवयछत्तोवगसिरीससत्तवन्नदहिवनलोधवचंदणनीवकुडयकयंयपणसतालतमालपियालपियंगुपारावयरायरक्स्वनंदिरुक्वेहिं सव्वओ समता संपरिक्वित्सा ॥ ते णं तिलया जाव नंदिरुक्खा मूलवंतो कन्दमंतो जाव सुरम्मा ॥ तेणं तिलया जाव नंदिरुक्खा अन्नेहिं यहहिं पउमलयाहिं जाव सामलयाहिं सब्बतो समंता संपरिक्खित्सा, ताओ णं पउमलयाओ जाव सामलयाओ निच्चं कुसुमियाओ जाव पडिस्याओ ।। तेसि णं चेतियरुक्वाणं उप्पि बहवे अवमंगलगा झया छत्तातिछत्ता ॥ तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरतो तिदिसि तओ मणिपेढियाओ पपणत्ताओ, ताओ णं मणिपेढियाओ जोयणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्यमणिमतीओ अच्छा जाव पडिरुवाओ ॥ तासि गं मणिपेढियाणं उप्पि पत्तेयं पत्तेयं माहिंदझया अट्ठमाई जोयणाई उई उच्चत्तेणं अद्धकोसं उब्वेहेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं वइरामयवलट्ठसंठियसुसिलिट्ठपरिघट्टमहसुपतिहिता विसिद्धा अणेगवरपंचव
दीप अनुक्रम [१७५]
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॥२२५॥
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अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-द्वीप-समुद्राधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- '२' अत्र २ इति निरर्थकम्
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