________________
आगम
(१४)
[भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" -
प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], -------------------- मूलं [१२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
%20-%2
प्रत सूत्रांक [१२७]
श्रीजी-15 जीवाभि मलयनिरीयावृत्तिः
----- - -- -- - aanmeeruram
- -- --९८
प्रतिपत्ती मनुष्या वनखण्डा
धि. उद्देशः१ सू०१२७
दीप
-
अच्छा जाव पहिल्या तासि खुड़ियाणं याचीणं जाय विलपतियाणं तत्थ तस्थ देस २ तहिं नहिं पहये उप्पाचपजचा गियइपध्वया जगनिपञ्चचा दारुपन्चयगा दगमंडवगा दगमंचका दगमालका दगपासायमा ऊसहा खुल्ला बडगा अंदोलगा पक्वंदोलगा सब्बरवणामया अच्छा जाव पथिरूमा । नेसुध उपाययचनेसु जाव परखंदोलए बहवे हंसासणाई कोंचासणाईगलासगाई उपवासगाई ५णयासणाई दीहालजाई महासणाई पक्वासणाई मगरासगाई उसभासगाईतीहासणाई पडमासणाई दिसालोत्थियासणाईसब्बरयणामयाई अच्छाई सहाई लण्हाईपट्टा मट्टाई जीरयाईणिम्नलाईनियंकाई निकंकडच्छाधाई सप्पभाई सम्मिरीयाई सोचाई पासादीयाई दरिसणिजाई अभिरुवाई पडिवाइं। तस्स णं बणसंडस्स तत्थ तस्थ देसे २ तहिं सहिपहवे आलिधरा मालिघरा कयलिधरा लयाधरा अच्छणघरा पेच्छणघरा मजणधरगा पसाहणधरगा जम्मघरगा भोहणधरगा साल घरगा जालघरगा कुसमघरगा चित्तधरगा गंधग्धघरमा आसघरमा सब्बरयणामया अच्छा सहा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका निकंकरच्छाया सप्पभा सम्मिरीया स उजोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ॥ तेसु णं आलिघरएसु जाव आयंसघरएसु बहई हंसासणाई जाव दिसासोवत्थियासणाई सब्धरयणामयाई जाव पडिरूवाई ।। तस्स णं वणसंडस्स तत्थ तस्थ देसे २तहिं
अनुक्रम [१६५]
॥१९६॥
%
अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-द्वीप-समुद्राधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- १' अत्र १ इति निरर्थकम्
~402~