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आगम (१४)
[भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" -
प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(द्वीप-समुद्र)], -------------------- मूलं [१२५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१२५]
श्रीजीवाजीवाभि मलयगिरीयावृत्तिः
प्रतिपत्ती देवाधि| कारः उद्देश:१ सू०१२५
॥१७९॥
दीप अनुक्रम [१६३]
यणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला णिप्पंका णिकंकडच्छाया सप्पभा समिरिया सउज्जोया पासाईया दरसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा । तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे हयपतीओ तहेव जाव पडिरूवाओ । एवं हयवीहीओ जाव पडिरूवाओ। एवं हयमिहुणाई जाव पडिरूवाई। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तस्थ वेसे तहिं तहिं यहवे पउमलयाओ नागलताओ, एवं असोग० चंपग० चूयवण वासंतिक अतिमुत्तग० कुंद. सामलयाओ णिचं कुसुमियाओ जाच सुविहत्तपिंडमंजरिवर्डिसकधरीओ सब्वरयणामईओ सण्हाओ लण्हाओ घटाओ मट्ठाओ णीरयाओ जिम्मलाओ णिपंकाओ णिकंकडच्छायाओ सप्पभाओ समिरीयाओ सउज्जोयाओ पासाईयाओ दरिसणिजाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ ॥ [तीसे णं पउमवरवेझ्याए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे अक्खयसोत्थिया पण्णत्ता सव्वरयणामया अच्छा] ॥ से केणद्वेणं (भंते) एवं बुचर-पउमवरवेइया पउमवरवेइया?, गोयमा! पउमवरवेइयाए तस्य तत्थ देसे तहिं तहिं वेदियासु वेतियाबाहासु वेदियासीसफलएसु वेदियापुउतरेसु खंभेसु खंभवाहासु खंभसीसेसु खंभपुडतरेसु मुईसु सुईमुहेसु सूईफलएम सईपुड़तरेसु पक्खेसु पक्खवाहासु पक्खपेरंतरेसु बहूई उप्पलाई पउमाई जाव सतसहस्सपत्ताई सव्वरयणामयाई अच्छाई सपहाई लण्हाई घटाई मट्ठाई णीरयाई णिम्मलाई निप्पकाई निकंकड
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|| १७९॥
अत्र मूल-संपादने शिर्षक-स्थाने एका स्खलना वर्तते-द्वीप-समुद्राधिकार: एक एव वर्तते, तत् कारणात् उद्देश:- १' अत्र १ इति निरर्थकम्
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