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________________ आगम (१४) [भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" - प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: [(देव०)], -------------------- मूलं [१२०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४], उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: १७) जीवशालीवाशिमामा-उपांगकुर-(मुलं ति.. प्रत सूत्रांक [१२०] AC-OCT-* ROCEXPER दीप अनुक्रम [१५८] ५ विसिष्टे ६ । जलप्पभ अमियवाहण ८ पभंजणे ९ चेव महघोसे १०॥ ६॥ चउसट्ठी सट्ठी खलु छच सहस्सा उ असुरखजाणं । सामाणिया उ एए चारगुणा आयरक्खा ॥७॥" पर्षदूतव्यताऽपि दाक्षिणात्यानां धरणवन् , उत्तराणां भूतानन्दवत् , तथा चाह"परिसाओ सेसाणं भवणवईणं दाहिगिहाणं जहा धरणस, 'उत्तरिलाणं जहा भूयाणदस्से"ति ॥ तदेवं भवन(पति)वक्तव्यतोक्का, सम्प्रति वानमन्तरवक्तव्यतामभिधित्सुराह कहिणं भंते! वाणमंतराणं देवाणं भवणा (भोमेजा णगरा) पण्णता?, जहा ठाणपदे जाव विहरंति ॥ कहिणं भंते! पिसावाणं देवाणं भवणा पण्णता?, जहा ठाणपदे जाव विहरति कालमहाकाला य तत्थ दुवे पिसायकुमाररायाणो परिवसंति जाब विहरति, कहि णं भंते! दाहिणिल्लाणं पिसायकुमाराणं जाव विहरंति काले य एल्थ पिसायकुमारिंदे पिसायकुमारराया परिवसति महहिए जाच विहरति ॥ कालस्स शंभंते! पिसायकुमारिंदस्स पिसायकुमाररणो कति परिसाओ पण्णत्ताओ?, गोयमा! तिषिण परिसाओ पपणत्ताओ, तंजहा-ईसा तुडिया दढरहा, अभितरिया ईसा मजिझमिया तुडिया वाहिरिया दढरहा । कालस्स णं भंते ! पिसायकुमारिंदस्स पिसायकुमाररपणो अभितरपरिसाए कति देवसाहस्सीओ पषणताओ? जाव बाहिरियाए परिसाए कह देविसया पण्णत्ता?, गो० कालस्स णं पिसायकुमारिंबस्स पिसाय कुमाररायस्स अभितरियपरिसाए अट्ट देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ मनिमपरि वाणव्यन्तर-देवानां भेद-प्रभेदा: एवं विविध-विषयाधिकारः ~351~
SR No.035016
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 16 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages480
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size116 MB
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