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________________ आगम | [भाग-१६] “जीवाजीवाभिगम" - उपांगसूत्र-३/१ (मूलं+वृत्ति:) (१४) __ प्रतिपत्ति : [३], ----------------------- उद्देशक: (तिर्यञ्च)-२], -------------------- मूलं [१०१-१०२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१४] उपांगसूत्र- [३] “जीवाजीवाभिगम" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: 444*-* प्रत सूत्रांक [१०११०२] उको तेतीसं सागरोवमाई ठिती, एयं सव्वं भाणियव्वं जाव सब्बट्टसिद्धदेवत्ति ॥ जीवे णं भंते ! जीवेत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा! सव्वई, पुढविकाइए णं भंते ! पुढविकाइएत्ति कालतो केवचिरं होति?, गोयमा! सब्बर्दू, एवं जाव तसकाइए ॥ (सू०१०१)। पटुप्पन्नपुढविकाइया णं भंते! केवतिकालस्स णिल्लेवा सिता?, गोयमा! जहण्णपदे असंखेजाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं उक्कोसपए असंखेजाहिं उस्सप्पिणीओसप्पिणीहिं, जहन्नपदातो उक्कोसपए असंखेजगुणा, एवं जाव पटुप्पन्नवाउकाइया। पडुप्पन्नवणप्फइकाइयाणं भंते! केवतिकालस्स निहल्लेवा सिता?, गोयमा! पटुप्पन्नवण० जहण्णपदे अपदा उकोसपदे अपदा, पटुप्पन्नवणप्फतिकाइयाणं णत्थि निल्लेवणा || पडप्पन्नतसकाइयाणं पुच्छा, जहण्णपदे सागरोवमसतपुहत्तस्स उकोसपदे सागरोवमसतपुहुत्तस्स, जहण्णपदा उक्कोसपदे विसेसाहिया ॥ (मू०१०२) 'काबिहा ण'मित्यादि, कतिविधा णमिति पूर्ववन् , भदन्त ! पृथिवी प्रज्ञप्ता ?, भगवानाह-गौतम पडिया प्रज्ञाप्ता, तथथा-लक्ष्ण-| | पृथिवी मृती चूर्णितलोष्टकल्पा, 'शुद्धपृथिवी' पर्वतादिमध्ये, मनःशिला-लोकप्रतीता, वालुका-सिकतारूपा, शर्करा-मुरुण्डपृथिवी, खरापृथिवी' पापाणादिरूपा । अधुना एतासाने स्थित्तिनिरूपणार्थमाह-'सण्हपुढवीकाइयाण मित्यादि, सक्ष्णपृथिवीकाविकानां भदन्त ! कियन्तं कालं खिति: प्रज्ञता ?, भगवानाह-गौतम ! जघन्येनान्तर्मुहूर्त्तमुत्कर्षत एक वर्षसहस्रं । एवमनेनाभिलापेन शेषाणामपि पृथिवीनामनया गाथया उत्कृष्ठमनुगन्तव्यं, तामेव गाथामाह-'साहा य'इत्यादिः (सहा य सुद्धवालुअ मणोसिला दीप अनुक्रम [१३५ १३६] ~289~
SR No.035016
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 16 Jivajivabhigam Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages480
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size116 MB
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