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________________ आगम (१३) [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः ) ---------- मूलं [८४-८५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३], उपांगसूत्र- [२] “राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: मूत्रस्य श्रीराजपनी पलय गिरीया वृत्तिः उरसंहार २८५ प्रत सूत्रांक [८४-८५] दीप अनुक्रम [८४-८५] परियागं पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएत्ता बढ़ाई भत्ताई पश्चक्रवाइस्सइ २ चा बहाई भचाई अणसणाए छेइस्सइ २ चा जस्सहाए कीरइ णग्गभावे केसलोचबंभचेरवासे अण्हाणगं अदतवर्ण अणुवहाणगं भूमिसेजाओ फलहसेजाओ परघरपवेसो लडावलडाई माणावमाणाई परेसि हीलणामी दिसणाओ गरहणा उच्चावया विरूवा बावीसं परोसहोवसग्गा गामकंटगा अहियासिज्जते तमहूँ आराहेइ २त्ता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासे हिं सिज्झिहिति मुचिहिति परिनि बाहिति स दुक्खाणमंतं करेहिति ॥ (सू०८४) ॥ सेवं भंते ! सेवे भंते ! नि भगवै गोयमे समर्ण भगवं महावीर बदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरति । णमो जिणाणं जियभयाणं । णमो सुयदेवयाए भगवतीए । णमो षण्णत्तीए भगवईए। णमो भगवओ अरहओ पासस्स पस्से सुपस्से पस्सवणा णमो ९ । रायप्पसेणीयं सम्मः ॥ (सू. ८५) ॥ ग्रंथाग्रं सूत्र २१००। नवंगसुत्तपतियोहिए' इति दे श्रोत्र हे नयने द्वे नासिके एका जिह्वा एका व एक मन इनि सुप्तानीच पाल्यादम्यक्तचेतनानि पनिबोधिनानि-यौवनेन व्यक्तचेतनानि कृतानि यस्य स तया, व्यपदारभाष्पे 'सोत्ताई नव सुत्ताई' इत्यादि, 'भट्ठारसविहदेसीप्पयारभासाविसारए' अष्टादशविधाया-अष्टादशभेदाया देशीम काराया-देशीवरूपाया भाषाया विशारदो-विचक्षणः, तथा गीतरवि तथा गन्धर्व गीते नाटधे च कुशला हयेन युध्यते इति हययोधी एवं गजयोधो रथयो १४९॥ SAREarating 4 murary.com प्रदेशी राज्ञस्य आगामि भवा: एवं मोक्ष-प्राप्ति: ~307~
SR No.035015
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size68 MB
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