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________________ आगम (१३) [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः ) ------------ मूलं [८३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३], उपांगसूत्र- [२] “राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: भीराजपनी मलयगिरीया वृत्तिः | प्रत सूत्रांक [८३]] ॥१४॥ परिमंडियाहिं सदेसणेवत्थगहियबेसाहिं इंगियाचतिगपत्थियचियाणाहिं निउणकुसलाहिं कलाशिक्षविगीयाहि चेडियाचकवालतरुणिवंदपरिवाल परिखुड़े वरिसघरकंचुइमहयरवंदपरिविवले ह. ieणादि स्थाओ हत्यं साहरिज्जमाणे उखन चिजमाणे २ अंगणं अंग परिभुजमाणे उगि जेमामे२ उक मू.८३ लालिज्जमाणे २ अवतासि.२ परिचुबिजमागे २ रम्मेसु मणिकोहिमतलेस परंगमाणे२ गिरिकदरमहोणे विव चंपगबरपायवे णि डाघायंसि सुहंसुहेणं परिवहिस्सइ । ताणं तं दृढपतियण दारगं अम्मापियरो सातिरेगअहवासजायगं जाणित्ता सोभणसि तिहिकरणणक्वत्ता::सि पहायं फयवलिकम्मं कयकोउअमंगलपायच्छित्तं सदालंकारविभूसिय करेता महया शोसकार। समुदएणं कलायरियस्ल उवणेहिति । तए णं से कलायरिए तं दढपतिण्णं दार लेहाइयाओ गणि. यप्पहाणाओ सउणरुयपजवसाणाओ यावत्तरि कलाओ सुनओ अत्यओ पसिक्खावेहि य सेहावेहि य, तं-लेहं गणिपं रूपं नई गोयं वाइयं सरगयं पुक्खरगयं समतालं जूर्य जणवयं पासर्ग अहावयं पारेका दगमहियं अन्नविहि पाणविहिं वत्थविहिं विलेवणविहिं सयणविहिं अज पहेलियं मागहिय णिहाइयं गाहं गीइयं सिलोगं हिरण्णजुर्ति सुवपणजुति आभरणविहिं तरूणीपडिकम्म इस्थिलक्खणं पुरिसलक्खणं हयलक्खणं गयलक्खणं कुक्कुडलक्षणं छत्तलक्षणं चकटकवणं देवलक्षणं असिलक्षणं मणिलक्षणं कामणिलक्षणं वत्थुविलं पागरमाणं खंधवारं माणवारं V१४७॥ दीप अनुक्रम [८३] Saintaintinml प्रदेशी राज्ञस्य आगामि भवा: एवं मोक्ष-प्राप्ति: ~303~
SR No.035015
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size68 MB
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