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आगम
(१३)
[भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः )
------------- मूलं [६५-६६] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [६५-६६]]
दीप अनुक्रम [६५-६६]
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पुरिसे तुम एवं वदेज्जा-मा ताव मे सामी ! मुहत्तगं हत्थच्छिण्णगं वा जाव जीवियाओ ववरीवेहि जाव तावा मित्तणाइणियगसपणसंबंधिपरिजणं एवं वयामि-एवं खलु देवाणुप्पिया! पाबाई कम्माई समायरेता इमेयारूवे आवई पाविज्जामि, तं मा णं देवाणुप्पिया ! तुम्भेषि केड पावाई कम्माई समायरउ, मा णं सेऽवि एवं चेव आवई पाविज्जिहिइ जहा णं अहं, तस्स णं तमं पएसी! पुरिसस्स खणमवि एयम पडिसुज्जासि, णो तिणडे समझे, जम्हा णं भंते ! अ. वराहीण से पुरिसे, एचामेव पएसी! तववि अज्जए होत्था इहेव सेयवियाए णपरीए अधम्मिए जाव णो सम्म करभरवित्ति पवत्तेइ, से णं अम्ह वत्तायाए सुबहुं जाव उववन्नो, तस्स णं अज्जगस्स तुम णत्तुए होत्था इट्टे कंते जाय पासणयाए, से णं इच्छइ माणुसं लोग हयमागकिछत्तए, णो चेव णं संचाएति हदमागच्छित्तए, चउहि ठाणेहिं पएसी अहणोववष्णए नरपसु मेरइए इच्छेइ माणुसं लोग हदमागच्छित्तए नो चेवणं संचाएइ अहणोववन्नए नरए नेरइए, से ण तत्थ महम्भूयं वेयणं वेदेमाणे इच्छेजा माणुस्सं लोग हणो चेवणं संचाएइ०१,अहणीववन्नए नरए नेरइए नयरपालेहिं भूज्जो २,समहि द्विज्जमाणे इच्छमाणुसं लोग हहमागच्छित्तए नो चेवणं संचापड २ अहणोचवन्नए नरएसु नेरइप निरयवेयणिज्जसि कम्मसि अकरवीणसि अवेइयंसि अनिज्जिनसि इच्छा माणुस लोग० नो चेष णं संचाएइ ३, एवं परइए निरयाज्यसि कम्मंसि अकूखीणंसि अवेइयंसि
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केसिकमार श्रमणं सार्धं प्रदेशी राज्ञस्य धर्म-चर्चा
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