________________
आगम
(१३)
[भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः )
------------ मूलं [५६-६१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३], उपांगसूत्र- [२] “राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [५६-६१]
॥ १२६॥
दीप अनुक्रम [५६-६१]
श्रीराजप्रश्नी मलयगिरी| उमाणपालगाणं अंतिर एगई सोच्या णिसम्म हदूत? जाव आसणाओ अम्भुति पायपीढाओ पच्चोरहर विधर्मयया वृत्तिः २चा पाडयाओ ओमुयइ रचा एगसाडियं उत्तरासंग करेइ, अंजलिमउलियनहत्थे केसिकुमारसमणाभिमुहे वर्ण
सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छह २त्ता करयलपरिग्गहियं सिरसाव मत्थए अंजलि कहु एवं वयासी-नमोत्थु ण अ-IAN०५९:
रहंताणं जाब संपत्ताणं, नमोऽत्थु णं केसियस कुमारसमणस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स बंदामि | A भगवंतं तत्थगयं इहगए पासउ मे सिक बदइ नमसइ, ते उजाणपालए विउलेणं यत्थगंधमलालंकारेणं * सकारेइ सम्माणेइ विउलं जीवियारिहं पीइदाण दलयइ २ चा पडिविसज्जेइ २ कोडुंबियपुरिसे सहावेइ ३ एवं |
वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया चाउट आसरह जुत्तामेव उवट्ठवेह जाव परचप्पिणह । तए ण ते को वियपुरिसा जाव खिप्पामेव सरछत्तं सज्झय जाब उचढवित्ता तमाणत्तिय पचप्पिणंति, तए णं से चित्ते | सारही कोटुंबियपुरिसाणं अंतिए एयम सारचा निसम्म हतुट्ठ जावहियए पहाए कयवलिकम्भे जाव सरीरे जेणेव चाउग्घंटे जाव दुरुहिचा सकोरंट० महया भडचडगरेणं तं चेव जाव पज्जुवासइ धम्मकहाए जाय ॥ (सू०५९) । तपणं से चित्ते सारही केसिस्त कुमारसमणस्त अंतिए धम्म सोच्या निसम्म हहतुढे उहाए तहेव एवं वयासी-एवं खल भंते ! अम्हं पएसी राया अधम्मिए जाव सयस्सविणं जणवयस्स नो सम्मं करभरवित्तिं पवसेइ, तं जइ णं देवाणुप्पिया! पएसिस्स रण्णो धम्ममाइक्खेज्जा बहुगुणतरं खलु होज्जा परसिस्स रपणो तेसिं च बहणं दुपयचउप्पयमियपमुपक्खोसिरीसवाणं,
॥१२॥
~261