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________________ आगम (१३) [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः ) ------------ मूलं [३१-३२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३], उपांगसूत्र- [२] “राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: -- -- -- - - - --- -- -- --- -- -- --- - श्रीराजपनी मलयगिरी या वृत्तिः सूर्याभविक मानवर्णन प्रत ॥७४॥ सूत्रांक [३१-३२] त्यादि तदाकारभावतः ॥ (मु.३०)॥ . तेर्सि णं वणसंडाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा, से जहा नामए आलिंगपुक्खरेति वा जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहि य हणेहि य उयसाभिया, तेसिं गं गंधो फासी फेयब्धी जहकम, तेसिणं भते! तणाण य मणीण य पुवावरदाहिणुत्तरातेहिं वातेहि मंदाणं पायाणं वेइयाण कंपियाणं चालियाणं फंदियाणं घटियाणं खोभियाणं उदीरिदाण केरिसए सहे भवति?, गोंयमा! से जहा नामए सीयाए वा संदमाणीए का रहरस वा सच्छत्तरस सज्झयस्स सधंटरस सपडागरस सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स सखिखिणिहेमजालपरिखित्तस्स हेमवयचित्ततिणिसकणगणिज्जुत्तदारुयायरस संपिनचकमंडल धुरागरस कालायससुकरणे मिलकम्मरस आइप्यरतुरगसुसंपततस्स कुसलणरच्छेयसारहिसुसंपगहियरस सरसयपत्तीसतोणपरिमंडियस्स सकेकवावयंसगस्स सचावसरपहरणा वरणभरियजुझसज्जस्स रायंगणसि वा रायतेउरंसि वा रम्मंसि वा मणिकुहिमतलंसि अभिक्खणं अभिघहिज्जमाणरस वा नियहिज्जमाणस्स वा ओरालमणोष्णा कपणमणनिव्वुइकरा सदा सव्वओ समता अभिणिस्सर्वति, भवेयारूवे सिया !, णो इणदेससमझे, से जहाणामए वेयालीयवीणाए उत्तरमंदामुच्छियाए अंके सुपइटियाए कुसलनरनारिसुसंपरिग्गहियाते चंदणकोणपरियट्टियाए पुम्वरत्तावरकालसमयसि मंदाय मंदाय वेड्याए पवेश्याए चालि 3 दीप अनुक्रम [३१-३२] ।।७४॥ Santantinue amurary.au मूल-संपादने अत्र शिर्षक-स्थाने सूत्र-क्रमांकने एका स्खलना दृश्यते यत् सू० ३१-३२ स्थाने सू० ३० मुद्रितं सूर्याभविमानस्य वर्णनं ~157~
SR No.035015
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size68 MB
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