________________
आगम (११)
भाग-१४ "विपाकश्रुत" - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्तिः )
श्रुतस्कंध: [१], ---------------------- अध्ययन [४] ----------------------- मूलं [२२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[११], अंगसूत्र-[११] विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरिरचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [२२]
विपाकेच्ढे तते णं से सगडे दारए सयातो गिहाओ निच्छ्ते समाणे संघाडगतहेव जाव सुदरिसणाए गणि-MY शकटा. श्रुत०१ दियाए सर्दि संपलग्गे यावि होत्या, तते णं से सुसेणे अमचे तं सगडं दारगं अन्नया कयाई सुदरिसणाए ग- वेश्यातो
|णियाए गिहाओ निच्छुभावेति सुदंसणियं गणियं अम्भितरियं ठावेति २ सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरा-131 नाशा Bालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति, तते णं से सगडे दारप सुदरिसणाश्री निहाओ निन् ।
समाणे अन्नस्थ कस्थवि सुर्ति वा अलभ० अन्नया कयाई रहसियं सुदरिसणागेहं अणुप्पविसह २ सुदरि|सिणाए सर्टि उरालाई भोगभोगाइं मुंजमाणे विहरह, इमं च णं सुसेणे अमचे पहाते जाव विभूसाप मणुस्सबरगुराए जेणेव सुदरिसणागणियाए गेहे तेणेव उवागच्छति तेणेव उवागच्छदत्ता सगडं दारयं सुदंस-द णाए गणियाए सद्धिं खरालाई भोगभोगाई भुजमाणं पासह आसुरुत्ते जाय मिसमिसेमाणे तिवलियं भिरि निकाले साइह सगडं दारयं पुरिसेहिं गिण्डाविति अहि जाच महियं करेति अपडगवणगं क-13
रेति २ जेणेव महचंदे राया तेणेव उवागवाह उवागछित्ता करयलजाव एवं पयासी-एवं खलु सामी! स६गबे दारए मम अंतेपुरसि अवरद्धे, तते णं से महरांदे राया सुसेर्ण अमचं एवं वपासी-तुर्म. चेष गं देवाणु-1* * प्पिया! सगडस्स दारगस्स दंदं यत्तेहि, तए णं से सुसेणे अमचे महदेणं रमा अम्मणुबाए समाणे स-18 गडं वारयं सुदरिसणं च गणियं एएणं बिहाणेणं वनं आणयेति, तं एवं खलु गोयमा। सगडे दारगे
६९ पोरापुराणाणं पवणुम्भवमाणे विहरति (सू०२२) सगडेणं भंते! दारए कालगए कहिंगच्छिदिति? कहिं जन
6495564545453
दीप अनुक्रम
अत्र मूल संपादने शीर्षक-स्थाने सूत्र-क्रमांकने एका स्खलना दृश्यते- यत् सू०२२ स्थाने सू० १९ इति क्रम मुद्रित
~78