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आगम
भाग-१४ “विपाकश्रुत" - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:)
श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [१] ---------- ---------- मूलं [७] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[११], अंगसूत्र-[११] विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरिरचिता वृत्ति:
मग विमान सरकार र युति ..
प्रत
हिमा सरीसवेस वववजिहिति, तत्थ ण कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उकोसेणं तिन्नि सागरोवमा सेणं ततो अणंतरं उब्वहिता पक्खीसु उववजिहिति, तत्थवि कालं किचा तचाए पुदवीए सत्त सागरोवमाई, से गं ततो सीहेसु य, तयाणंतरं चोत्थीए उरगो पंचमी० इत्थी० छट्ठी० मणुआ० अहे सत्तमाए, ततोऽणंतरं उब्वहित्ता से जाई इमाई जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छकच्छभगाहमगरसुसुमारादी] अद्धतेरस जातिकुलकोडिजोणिपमुहसयसहस्साई तत्थ णं एगमेगंसि जोणीविहाणंसि अणेगसतसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता २ तत्थेव भुजो २ पचायाइस्सति, से णं ततो उव्वहित्ता एवं चउपएमु उरपरिसप्पेसु भुयपरिसप्पेस खयरेसुचउरिदिएसु तेइंदिएसु बेईदिएम वणप्फइएसु कडयरुक्खेसु कडुयदुद्धिएसु वाउ० तेऊ. आऊ. पुढवी० अणेगसयसहस्सखुत्तो, से ततो अणंतरं उब्वहित्ता सुपइठ्ठपुरे नगरे गोणत्ताए पंचाया. हिति, सेणं तत्य उम्मुक्त जाव बालभावे अन्नया कयाई पढमपाउसंसि गंगाए महानईए खलीयमद्वियं खणमाणे तडीए पेल्लिए समाणे कालगए तत्धेच सुपाढे पुरे नगरे सेहिकुलसि पुमत्साए पचायाइस्संति, से
दीप अनुक्रम
१'जाइकुलकोडीजोणिप्पमुहसयसहस्साईति जाती-पञ्चेन्द्रियजाती कुलकोटीनां योनिप्रमुखानि-योनिद्वारकाणि योनिशतसहस्राणि तानि तथा। २ 'जोणीविहाणंसि'त्ति योनिभेदे । ३ 'खलीणमट्टिय'त्ति खलीना-माकाशस्थां छिन्नतटोपरिवर्तिनी मृत्तिकामिति ।
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मृगापुत्रस्य आगामि-भवा:
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