________________
आगम (१२)
भाग-१४ “औपपातिक" - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:)
----------- मूलं [३९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[११], अंगसूत्र-[११विपाकश्रुत” मूलं एवं अभयदेवसूरिरचिता वृत्ति:
औपपा- तिकम्
॥९४॥
प्रत
सूत्रांक
[३९]]
प्पिया! अम्ह इमीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगदातारस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करित्तए । त्तिकट्ठ अण्णमण्णस्स अंतिए एअम पडिसुणंति रत्ता तीसे अगामियाए जाव अडवीए उद्गदातारस्स सब्बओ
सू०३९ समता मग्गणगवेसणं करेइ करित्ता उदगदातारमलभमाणा दोचंपि अण्णमण्णं सहावेन्ति सदावेत्ता एवं चयासी-इह णं देवाणुप्पिया! उद्गदातारो णत्थि तं णो खलु कप्पइ अम्ह अदिण्णं गिण्हित्तए अदिण्णंद सातिजित्तए, तं मा णं अम्हे इयाणिं आवइकालंपि अदिपणं गिण्हामो अदिण्णं सादिजामो मा || अम्हं तवलोवे भविस्सइ, तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! तिदंडयं कुंडियाओ य कंचणियाओ। |य करोडियाओ य भिसियाओ य छपणालए य अंकुसए य केसरीयाओ य पवित्तए य गणेत्तियाओ
य छत्तए य वाहणाओ य पाउयाओ य धाउरत्ताओ य एगते एडित्ता गंगं महाणई ओगाहित्ता वालुअ|संधारए संथरित्ता संलेहणाझोसियाणं भत्तपाणपडियाइक्खियाणं पाओवगयाणं कालं अणवखमा-15 णाणं विहरित्तएत्तिकट्ठ अण्णमण्णस्स अंतिए एअमठं पडिसुणंति, अण्णमण्णस्स अंतिए पडिसुणित्ता तिर्दडए य जाव एगते एडेइ २ गंगं महाणई ओगाहेतिरत्ता वेलुआसंधारए संथरंति वालुयासंथारयं दुरुहिंति, वारत्ता पुरत्याभिमुहा संपलियंकनिसन्ना करयलजावकटु एवं वयासी-मोऽत्थु णं अरहंताणं जाव संप- ॥९४॥ ताणं, नमोऽत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स, नमोऽत्थुणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स अम्हं धम्मायरियस्स धम्मोबदेसगस्स, पुर्वि णं अम्हे अम्मडस्स परिव्वायगस्स अंतिए थूलगपाणाइ
दीप अनुक्रम
४ि९
SARERatinintainarana
अंबड-परिव्राजकस्य कथा
~327~