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आगम
(११)
भाग-१४ "विपाकश्रुत" - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्तिः )
श्रुतस्कंध: [२], ----------------------- अध्ययनं [१] ----------- --------- मूलं [३३] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[११], अंगसूत्र-[११] विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरिरचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक
[३३]
कयलक्खणे मुलद्धे पां मणुस्सजम्मे सुकयस्थ ] जाव तं धन्ने णं देवाणुप्पिया सुमुहे गाहावई । तते णं से सुमुहे गाहाबई पहुई वाससताई आउयं पालइत्ता कालमासे कालं किया इहेच हथिसीसे गरे अदीण-12 सत्तुस्स रन्नो धारणीए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने, तते णं सा धारणी देवी सयणिजंसि सुत्तजागरा
ओहीरमाणी २ तहेव सीहं पासति सेसं तं चेव जाव उपि पासाए विहरति, तं एयं खलु गोयमा! सुवा-k हुणा इमा एयारूवा माणुस्सरिद्धी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया, पभू णं भंते! सुबाहुकुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए?, हंता पभू, तते णं से भगवं गोयमे समणं भगवंडू वंदति नमसति २ संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरति, तते णं से समणे भगवं महावीरे अन्नया |कयाइ हत्धिसीसाओणगराओ पुष्फगउजाणाओ कयवणमालजक्खापयणाओ पडिणिक्खमति २त्ता बहिया ४जणवयविहारं विहरति, तते णं से सुबाहुकुमारे समणोवासए जाते अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे |विहरति । तते णं से सुबाहुकुमारे अन्नया कयाई चाउद्दसमुदिपुण्णमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छति २त्ता पोसहसालं पमजति २सा उच्चारपासवणभूमि पडिलेहति २त्ता दग्भसंधारगं संघरति| २ दम्भसंथारं दुरूहइ दुरूहित्ता अट्टमभत्तं पगिण्हइ पगिण्हेत्ता पोसहसालाए पोसहिते अट्ठमभत्तिए पोसहं
'अभिगयजीवाजीवे' इद्द यावत्करणात् 'उचलद्धपुन्नपावे इत्यादिकम् 'अहापडिग्गहिएहि बोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे | विहरई' एतदन्तं दृश्यम् । २'चाउद्दसमुद्दिपुषणमासिणीसुत्ति अत्रोद्दिष्टा-अमावास्या ।
दीप अनुक्रम [३५-३७]
ACCOCOCCAL
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