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________________ आगम भाग-१४ "विपाकश्रुत" - अंगसूत्र-११ (मूलं+वृत्तिः ) श्रुतस्कंध: [१], ----------------------- अध्ययनं [८] ----------- --------- मूलं [२९] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[११], अंगसूत्र-[११] विपाकश्रुत" मूलं एवं अभयदेवसूरिरचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [२९] विपाके च्छंति बहहिं उप्पत्तियाहिं ४ बुद्धीहि य परिणममाणा वमणेहि य छडणेहि य उवीलणेहि य कवलग्गाहेहि य नन्दिश्रुत०१सल्लद्धरणेहि य विसल्लकरणेहि य इच्छंति सोरियमच्छंधे मच्छकंटयं गलाओ नीहरित्तए, नो चेव णं संचाएंतिवर्धनाध्य. नीहरित्तए वा विसोहितए चा, तते णं बहवे विजा य ६ जाहे नो संचाएंति सोरियस्स मच्छकंटगं गलाओ नन्दिवर्ध. ॥८१॥ पानीहरित्तए ताहे संता जाव जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया,तते णं से सोरिय० मच्छ० विज नप्रागुत्त पडियारनिविणे तेणं दुक्खेणं महया अभिभूते सुक्के जाच विहरति, एवं खलु गोयमा! सोरियदत्ते पुरा- रभवाः |पोराणाणं जाब विहरति, सोरिए णे भंते ! मच्छंघे इओ य कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति? कहिं सू. २२ उवव०१, गोयमा सत्तरि वासाई परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किचा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए संसारो तहेव पुढवीओ हथिणाउरे णगरे मच्छत्ताए उबवन्ने, से णं ततो मच्छिएहिं जीचियाओ ववरोविए तत्धेय सेट्टिकुलंसि बोहिं सोहम्मे कप्पे महाविदेहे चासे सिज्झिहिति । निक्खेवो ॥ (सू. २९) अट्ठमं अज्झयणं सोरियदत्तस्स सम्मत्तं ॥८॥ १ बमणेहि यत्ति वमनं स्वतः संभूतं 'छडणेहि यत्ति छर्दनं च वातादिद्रव्यप्रयोगकृतम् , 'उबीलणेहि यत्ति अवपीडनं, कबल-1 ॥१॥ ग्राहः-गलकण्टकापनोदाय स्थूलकबलमहणं मुखविमर्दनार्थ वा दंष्ट्राधः काष्ठखण्डदानं, शल्योद्धरणं-यबप्रयोगकः कण्टकोद्धारः विशल्यकरणं औषधसामादिति 'नीहरित्तए'त्ति निष्काशयितुं विसोहितपत्ति पूयाद्यपनेतुम् । अष्टमाध्ययनस्य विवरण शौरिकमात्स्यिकस्य समाप्तम्।।८॥ SCAKACOCK दीप अनुक्रम [३२] अत्र अष्टमं अध्ययनं परिसमाप्तं ~108~
SR No.035014
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 14 Vipakshrut and Auppatik Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages384
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size81 MB
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