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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [२०], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [६७४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: ॐ प्रत सूत्रांक [६७१६७३] दीप अनुक्रम [७८९-७९१] व्याख्या-8 षष्ठोद्देशके पृथिव्यादीनामाहारो निरूपितः, स च कर्मणो बन्ध एव भवतीति सप्तमे बन्धो निरूप्यते, इत्येवंसम्बद्ध- २० शतके प्रज्ञप्तिः स्थास्येदमादिसूत्रम् उद्देशः७ अभयदेवी | कइविहे णं भंते ! बंधे प०, गोयमा! तिविहे पं०२०-जीवप्पयोगबंधे १ अणंतरपओगबंधे २ परंपरबंधे जीवप्रयोग या वृत्तिः२|| नेरइयाणं भंते ! कइविहे प० एवं चेव, एवं जाव वेमाणियाणं । नाणावरणिजस्स णं भंते ! कम्मस्स बन्धादि काविहे बंधे प०१, गोयमा ! तिबिहे बंधे प० तं०-जीवप्पयोगबंधे अणंतरबंधे परंपरबंधे, नेरइयाणं भंते ! ॥७९॥ सू६७४ नाणावरणिज्जस्स कम्मरस कइविहे बंधे प० एवं चेव जाच वेमाणियाणं, एवं जाव अंतराइयरस । णाणावर णिज्जोदयस्सणं भंते ! कम्मस्स कइविहे बंधे प०१, गोयमा ! तिविहे बंधे पं० एवं चेव एवं नेरइयाणवि एवं काजाव येमाणिपाणं, एवं जाव अंतराइउदयस्स, इत्थीवेदस्स णं भंते ! काविहे पंधे प०१, गोयमा ! तिविहे || | बंधे प०, एवं चेव, असुरकुमाराणं भंते । इत्थीवेदस्स कतिविहे बंधे प०१, गो० ! तिविहे बंधे प० एवं चेच एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं जस्स इत्थिवेदो अत्थि, एवं पुरिसवेदस्सवि एवं नपुंसगवे. जाव घेमाणियाणं नवरं जस्स जो अत्धि वेदो, दंसणमोहणिजस्स णं भंते! कम्मस्स कइविहे बं, एवं चेव निरंतरं जाव चेमा०, र एवं चरितमोहणिजस्सवि जाव वेमाणियाणं, एवं एएणं कमेणं ओरालियसरीरस्स जाव कम्मगसरीरस्स आहारसमाए जाव परिग्गहस० कण्हलेसाए जाव सुकलेसाए सम्मदिट्ठीए मिच्छादिट्ठीए सम्मामिच्छादि-12 ॥७९०॥ हीए आभिणिबोहियणाणस्स जाव केवलनाणस्स मइअन्नाणस्स सुयअन्नाणस्स विभंगनाणस्स एवं आभि | अथ विंशतितमे शतके सप्तम-उद्देशक: आरभ्यते ~489
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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