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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१८], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [७], मूलं [६३२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [६३२] व्याख्या एवं?, गोयमा ! अण्णं ते अन्नउत्थिया जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहिंसु, अहं पुण गोयमा ! १८ शतके प्रज्ञप्तिः एषमाइक्वामि ४-नो खलु केवली जक्खाएसेणं आइस्सति, नो खलु केवली जक्खाएसेणं आतिढे समाणे | उद्देशः७ अभयदेवी-IC आहच दो भासाओ भासति तं०-मोसं वा सचामोसं वा, केवली णं असावजाओ अपरोवघाइयाओ केवलिनोऽया वृत्तिा || आहाय दो भासाओ भासति, त०-सचं वा असचामोसं वा ॥ (सूत्रं ६३२)॥ नाविष्टता 'रायगिहे' इत्यादि, 'जक्खाएसेणं आइस्सईत्ति देवावेशेन 'आविश्यते' अधिष्ठीयत इति, 'नो खलु'इत्यादि. सू ६३२ ॥७४९॥ कर्मोपध्यानो खलु केवली यक्षावेशेनाविश्यते अनन्तवीर्यत्वात्तस्य, 'अण्णातिट्टे'त्ति अन्याविष्ट:-परवशीकृतः ॥ सत्यादिभाषाद्वयं च द्या-सू१३३ IN भाषमाणः केवली उपधिपरिग्रहप्रणिधानादिकं विचित्र वस्तु भाषत इति तदर्शनार्थमाह कतिविहे णं भंते ! उवही पण्णत्ते ?, गोयमा ! तिविहे उवही प०, तं०-कम्मोवही सरीरोवही बाहिरभडमत्तोवगरणोवही, नेरइयाणं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! दुविहे उवही प०२०-कम्मोवही य सरीरोबही य, सेसाणं तिधिहा उवही एगिदियवजाणं जाव चेमाणियाणं, एगिदियाणं दुविहे प० तंजहा-कम्मोवही य. सरीरोवही य, कतिविहे णं भंते ! उवही पं?, गो. निविहे उवही प० तंजहा-सचित्ते अचित्ते मीसए, एवं | नेरइयाणवि, एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाणं । कतिविहे भंते ! परिग्गहे प०१, गोयमा ! तिविहे परिग्गहे प०, तं०-कम्मपरिग्गहे सरीरपरिग्गहे बाहिरगभंडमत्तोवगरणपरिग्गहे, नेरइयाणं भंते ! एवं जहा| ७४९॥ उवहिणा दो दंडगा भणिया तहा परिग्गहेणवि दो दंडगा भाणियचा, [ग्रन्थानम् ११०००] कइविहे णं दीप अनुक्रम [७४२] Tanasaram.org ~407
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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