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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१८], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [६], मूलं [६३०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [६३०] हि लोकसंव्यवहारपरत्वात् तदेव तत्राभ्युपगच्छति शेषरसवर्णादीस्तु सतोऽप्युपेक्षत इति, 'निच्छदयनयस्स'त्ति नैश्चयि- व्याख्या १८ शतके प्रज्ञप्तिः ||| कनयस्य मतेन पञ्चवणोदिपरमाणूनां तत्र विद्यमानत्वात् पश्चवर्णादिरिति ॥ | उद्देशः ६ अभयदेवी- परमाणुपोग्गले णं भंते ! कतिबन्ने जाव कतिफासे पन्नत्ते ?, गोयमा ! एगवन्ने एगगंधे एगरसे दुफासे निश्चयेतरा यावृत्तिः भ्यांगोल्या | पन्नत्ते ॥ दुपएसिए णं भंते ! खंधे कतिबन्ने पुच्छा, गोयमा ! सिय एगवन्ने सिय दुवन्ने सिय एग गंधे सिय दुगंधे सिय एगरसे सिय दुरसे सिय दुफासे सिय तिफासे सिय चउफासे पन्नत्ते, एवं तिपएसिएवि, नवरं | दिवर्णादि ॥७४८॥ परमाण्वादि सिय एगवने सिय दुचने सिय तिवन्ने, एवं रसेसुवि, सेसं जहा दुपएसियस्स, एवं चउपएसिएवि नवरं सिया सिव नवर सिय ४ वर्णादिसू एगवने जाय सिय चवन्ने, एवं रसेसुवि सेसं तं चेव, एवं पंचपएसिएवि, नवरं सिय एगवन्ने जाब सिय पंचवन्ने, एवं रसेसुचि गंधफासा तहेब, जहा पंचपएसिओ एवं जाव असंखेजपएसिओ ॥ सुहमपरिणए णं भंते ! अणंतपएसिए खंधे कतिवन्ने जहा पंचपएसिए तहेव निरवसेसं, बादरपरिणए णं भंते । अणंतपएसिए खंधे कतिवन्ने पुच्छा, गोयमा ! सिय एगवन्ने जाव सिय पंचवन्ने सिय एगगंधे सिय दुगंधे सिय एगरसे जाव सिय पंचरसे सिय चउफासे जाव सिय अट्ठफासे प० । सेवं भंते ! २ सि॥(सूत्रं ६३१)॥१८-६॥ 'परमाणुपोग्गले णमित्यादि, इह च वर्णगन्धरसेषु पञ्च द्वौ पञ्च च विकल्पाः 'दुफासे सि स्निग्धरूक्षशीतोष्णस्पर्शा- ७४८॥ नामन्यताविरुद्धस्पर्शययुक्त इत्यर्थः, इह च चत्वारो विकल्पाः शीतस्निग्धयोः शीतरूक्षयो उष्णस्निग्धयोः उष्णरुक्षयोश्च PSI सम्बन्धादिति ॥ 'दुपपसिष 'मित्यादि, "शिया पगवति योरपि प्रदेशयोरेकवर्णत्वाद, इह च पच विकल्पाः, उRAKAS दीप अनुक्रम [७४०] weredturary.com ~405
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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