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आगम
(०५)
[भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१८], वर्ग [-], अंतर्-शतक -1, उद्देशक [१], मूलं [६१६] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
सूत्रांक [६१६]
सन्नी णं भंते ! जीवे सन्नीभावणं किं पढमे पुच्छा, गोयमा ! नो पढमे अपढमे, एवं विगलिंदियवनं जाव 8 वेमाणिए, एवं पुहुत्तेणवि३। असन्त्री एवं चेव एगत्तपुहुत्तेणं नवरं जाव वाणमंतरा, नोसन्नीनोअसन्नी
जीवे मणुस्से सिद्धे पढमे नो अपढमे, एवं पुहुत्तेणवि४॥सलेसे गं भंते ! पुच्छा, गोयमा ! जहा आहारए एवं || पुटुत्तेणवि कण्हलेस्सा जाव मुफलेस्सा एवं चेव नवरं जस्स जा लेसा अस्थि । अलेसे णं जीवमणुस्ससिद्धे
जहा नोसनीनोअसन्नी ५॥ सम्मदिट्टीए णं भंते ! जीवे सम्मदिहिभावेणं किं पढमे पुच्छा, गोयमा ! सिय पढमे सिय अपढमे, एवं एगिदियवजं जाव वेमाणिए, सिद्धे पढमे नो अपढमे, पुहुत्तिया जीवा पढमावि अपढमावि, एवं जाव वेमाणिया, सिहा पढमा नो अपढमा, मिच्छादिट्ठीए एगत्तपुहुत्तेणं जहा आहारगा, सम्मामिच्छादिही एगत्तपुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी, नवरं जस्स अस्थि सम्मामिच्छत्तं ६॥ संजए जीवे मणुस्से | य एगत्तपुहुतेण जहा सम्मदिही, असंजए जहा आहारए, संजयासंजए जीवे पंचिंदियतिरिक्खजोणिय-|| मणुस्सा एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी नोसंजएनोअस्संजएनोसंजयासंजए जीवे सिद्धे य एगत्तपुहुत्तेणं पढमे नो अपढमे ७॥ सकसायी कोहकसायी जावलोभकसायी एए एगत्तत्तुपुहुत्तेणं जहा आहारए, अकसा. जीवे सिय पढमे सिय अपढमे, एवं मणुस्सेवि, सिद्धे पढमे नो अपढमे, पुहत्तर्ण जीवा मणुस्सावि पढमावि अपढमावि, सिद्धा पढमा नो अपढमा ८॥णाणी एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिही आभिणियोहियनाणी जाव मणपजवनाणी एगत्तपुत्तेणं एवं चेव नवरं जस्स जं अस्थि, केवलनाणी जीवे मणुस्से सिद्धे य एग
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CASERECTOR
गाथा:
दीप अनुक्रम [७२१-७२६]
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