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आगम (०५)
[भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१५], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [-], मूलं [५५९-R] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [५५९R]
विमलवाहणे णं भंते ! राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहए जाव भासरासीकए समाणे कर्हि गच्छिहिति कहिं उववजिहिति ?, गोयमा ! विमलवाहणे णं राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे अहेसत्तमाए पुढवीए उकोसकालट्ठियंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति, से णं ततो अणंतरं उद-द ट्टित्ता मच्छेसु उववजिहिति, से णं तत्थ सत्थवझे दाहयक्तीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चंपि अहे सत्तमाए | पुढवीए उक्कोसकालद्वितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति, से गं तोऽणंतरं उच्चहित्ता दोचंपि मच्छेसु । | उववजिहिति, तत्थवि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा छट्ठीए तमाए पुढवीए उक्कोसकालहिइयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववविहिति, से णं तओहितो जाव बहित्ता इत्थियामु उपजिहिति, तस्थवि णं सत्थवजा दाह || जाव दोचंपि छडीए तमाए पुढचीए उक्कोसकालजाव उच्चट्टित्ता दोचंपि इत्थियासु उवव०, तत्थवि णं सत्य| वझे जाव किच्चा पंचमाए घूमप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालजाव उच्चहिता उरएसु उववजिहिति, तत्थवि णं सस्थवज्झे जाव किच्चा दोचंपि पंचमाए जाव उत्पट्टित्ता दोचंपि उरएसु उववचिहिति, जाव किच्चा चउत्थीए । पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालद्वितीयंसि जाव उद्यहित्ता सीहेसु उववजिहिति तत्थवि णं सत्यवझे तहेव जाव किया दोचपि चउत्थीए पंकजाव उघहित्ता दोचंपि सीहेसु उवव० जाव किचा तचाए वालुपप्पभापद
उकोसकालजाव उत्पट्टित्ता पक्खीसु उवव० तत्थवि णं सत्थवज्झे जाव किया दोचंपि तच्चाए वालुयजाव उच्चद हित्ता दोचंपि पक्खीसु उवव० जाव किच्चा दोच्चाए सकरप्पभाए जाव उच्चट्टित्ता सिरीसवेसु उवध तत्थवि
दीप अनुक्रम [६५८]
गोशालक-चरित्रं
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