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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [५], मूलं [५१५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५१५] प्पत्ता य अणिहिप्पत्ता य, तत्थ णं जे से इहिप्पत्ते पंचिंदियतिरिक्खजोणिए सेणं अत्धेगइए अगणिका-8 यस्स मज्झमज्नेणं वीयीवएजा अत्थेगइए नो वीयीवएज्वा, जे णं वीयीवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा !, नो तिणढे समठे, नो खलु तत्थ सत्थं कमइ, तत्थ ण जे से अणिहिप्पत्ते पंचिंदियतिरिक्खजोणिए से णं अस्थे-12 गतिए अगणिकायस्स मज्झमझेणं बीयीवएना अत्धेगतिए नो वीइवएज्जा, जे णं बीयीच एज्जा से णं तत्व झियाएजा ?, हंता झियाएजा, से तेणडेणं जाव नो वीयीवएज्जा, एवं मणुस्सेवि, पाणमंतरजोइसियवेमाणिएर जहा असुरकुमारे (सूत्रं ५१५)॥ 'नेरइए ण'मित्यादि, इह च क्वचिदुद्देशकार्थसहगाथा दृश्यते, सा चेयं-"नेरइय अगणिमझे दस ठाणा तिरिय पोग्गले देवे । पचयभित्ती उलंघणा य पलंघणा चेव ॥१॥” इति, अर्थश्चास्या उद्देशकार्थावगमगम्य इति, 'नो खलु टू तत्थ सत्थं कमइ'त्ति विग्रहगतिसमापन्नो हि कार्मणशरीरत्वेन सूक्ष्मः, सूक्ष्मत्वाच्च तत्र 'शस्त्रम्' आयादिकं न क्रा|मति । 'तत्य णं जे से'इत्यादि, अविग्रहगतिसमापन्न उत्पत्तिक्षेत्रोपपन्नोऽभिधीयते न तु ऋजुगतिसमापन्नः तस्येह प्रकहरणेऽनधिकृतत्वात् , स चाग्निकायस्य मध्येन न व्यतिव्रजति, नारकक्षेत्रे बादराग्निकायस्याभावात् , मनुष्यक्षेत्र एव तद्भा वात् , यच्चोत्तराध्ययनादिषु श्रूयते-"हुयासणे जलतमि दहपुवो अणेगसो ।"इत्यादि तदग्निसदृशद्रव्यान्तरापेक्षया3वसेय, संभवन्ति च तथाविधशक्तिमन्ति द्रव्याणि तेजोलेश्याद्रव्यवदिति ॥ असुरकुमारसूत्रे विग्रहगतिको नारकवत्, द अविग्रहगतिकस्तु कोऽप्यनेमध्येन व्यतिव्रजेत् यो मनुष्यलोकमागच्छति, यस्तु न तत्रागच्छति असौ न व्यतिव्रजेत् | दीप अनुक्रम [६१२] 456-5-195-45-45%95 GROGRAM wereumstaramorg ~193
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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