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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१४], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-1, उद्देशक [४], मूलं [५१४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [५१४] कइविहे णभंते ! परिणामे पण्णत्ते, गोयमा ! दुविहे परिणामे पण्णत्ते, तंजहा-जीवपरिणामे य अजीनवपरिणामे य, एवं परिणामपयं निरवसेसं भाणियई । सेवं भंते ! २ जाव विहरति (सूत्रं ५१४)॥१४-४॥ 'कहविहे णमित्यादि, तत्र परिणमनं-द्रव्यस्यावस्थान्तरगमनं परिणामः, आह च-"परिणामो ह्यान्तरगमनं न च सर्वथा व्यवस्थानम् । न तु सर्वथा विनाशः परिणामस्तद्विदामिष्टः॥१॥" इति, 'परिणामपर्य'ति प्रज्ञापनायां त्रयोदशं परिणामपदं, तचैवं-'जीवपरिणामे णं भंते! कइ विहे पन्नत्ते?, गोयमा ! वसविहे. पण्णते, तंजहागइपरिणामे इंदियपरिणामे एवं कसायलेसा जोगउवओगे नाणदसगचरित्तवेदपरिणाम 'इत्यादि, तथा-3 | 'अजीवपरिणामे णे भंते ! कइविहे पण्णते?, गोयमा! दसविहे पण्णत्ते तंजहा-बंधणपरिणामे १ गइपरिणामे २ एवं | संठाण ३ भेय ४ वन ५ गंध ६ रस ७ फास ८ अगुरुलहुय ९ सद्दपरिणामे १०"इत्यादि । चतुर्दशशते चतुर्थः ॥१४-४॥ दीप अनुक्रम [६११] चतुर्थोद्देशके परिणाम उक्त इति परिणामाधिकाराव्यतिव्रजनादिकं विचित्रं परिणाममधिकृत्य पञ्चमोद्देशकमाह, || तस्य चेदमादिसूत्रम्I नेरहए णं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमझेणं बीइवएजा?, गोयमा! अत्धेगतिए वीहवएना अत्थे-12 गतिए नो वीइवएज्जा, से केणटेणं भंते ! एवं चुचइ अत्धेगइए वीइवएज्जा अत्धेगतिए नो वीइवएजा?, गो-18 यमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-विग्गहगतिसमावन्नगा य अविग्गहगतिसमावनगा य, तस्थ णं जे से अत्र चतुर्दशमे शतके चतुर्थ-उद्देशक: परिसमाप्त: अथ चतुर्दशमे शतके पंचम-उद्देशक: आरब्ध: ~191~
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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