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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [४९८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४९८] दीप अनुक्रम [५९४] व्याख्या- हत्थकिचगएणं अप्पाणणं सेसं जहा केयाघडियाए, एवं छत्तं एवं चामरं, से जहानामए-केह पुरिसे रयणं १३ शतके प्रज्ञप्तिः गहाय गच्छेजा एवं चेव, एवं वरं वेरुलियं जाब रिह, एवं उप्पलहत्त्वगं एवं पउमहत्थगं एवं कुमुदहत्वगं ४९ उद्देशः अभयदेवी- एवं जाव से जहानामए-केह पुरिसे सहस्सपत्तगं गहाय गच्छेज्जा एवं चेच, से जहानामए के पुरिसे भिसंसाधो केतया पत्तिः अवदालिय २ गच्छेजा एवामेव अणगारेवि भिसकिचगएणं अप्पाणेणं तं चेव, से जहानामए-मुणालिया घटिकादिवं सिया उद्गंसि कायं उम्मज्जिय २ चिहिजा एवामेव सेसं जहा वग्गुलीए, से जहानामए-वणसंडे सिया किण्हेर क्रियकात || किण्होभासे जाव मिकुरुयभूए पासादीए ४ एवामेव अणगारेवि भावियप्पा वणसंडकियगएणं अप्पाणेणं| |सू ४९८ उहुं वेहासं उप्पाएजा सेसं तं चेव, से जहानामए-पुक्खरणी सिया चउक्कोणा समतीरा अणुपुवसुजायजाव४ सदुबइयमरसरणादिया पासादीया ४ एवामेच अणगारेवि भावियप्पा पोक्खरणीकिच्चगएणं अप्पाणे] उहूं हे वेहासं उप्पएज्जा ?, हंता उत्पएज्जा, अणगारे गं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू पोक्खरणीकिच्चगयाई रूवाई विउवित्तए !, सेसं तंव जाप विउविस्संति वा । से भंते ! किं मायी विउधति अमायी विउच्चति , गोयमा ! मायी विउचह नो अमायी विउच्चद, मायी णं तस्स ठाणस्स अणालोइय एवं जहा तइयसए चउत्धुद्देसए जाव अस्थि तस्स आराहणा । सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाब बिहरहत्ति (सत्र ४९८)॥ १३-१॥ ॥६२७॥ PI 'रायगिहे'इत्यादि, 'केयाघडिय'ति रज्जुप्रान्तबद्धपटिका 'केयाघडियाकिच्चहत्थगएण'ति केयाघटिकालक्षणं ४ यत्कृत्य-कार्य तत् हस्ते गतं यस्य स तथा तेनात्मना 'वेहासं'ति विभक्तिपरिणामात् 'विहायसि' आकाशे 'केयाघ Auditurary.com ~164
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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