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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [४७५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४७५] | त्वात् 'अप्पजुइयतर'त्ति दीप्रभावात् , एतदेव व्यतिरेकेणोच्यते-'नो तहामहहिए'इत्यादि, नोशब्दः पदद्वयेऽपि सम्बन्धनीयः॥ रयणप्पभापुढविनेर इया णं भंते ! केरिसयं पुढविफासं पञ्चणुभवमाणा विहरंति ?, गोयमा ! अणिटुं जाव अमणाम एवं जाव अहेसत्तमपुढविनेरइया एवं आउफासं एवं जाव वणस्सइफास (सूत्रं ४७६)॥ इमार णं भंते ! रयणप्पभापुढची दोघं सफरप्पर्भ पुढवि पणिहाय सबमहंतिया बाहल्लेणं सपखुडिया सर्वतेसु एवं जहा जीवाभिगमे बितिए नेरइयउद्देसए ॥ (सूत्रं ४७७)। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए णिरयप-10 E रिसामंतेसु जे पुढविक्काइया एवं जहा नेरइयउद्देसए जाव अहेसत्तमाए (सूत्रं ४७८)। कहिणं भंते ! है लोगस्स आयाममझे पण्णते?, गोयमा! हमीसे णं रयणप्पभाए उवासंतरस्स असंखेजतिभागं ओगाहेत्ता एत्थ णं लोगस्स आयाममजले पण्णत्ते । कहि णं भंते ! अहेलोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते ?, गोयमा ! चउधीए पंकप्पभाए पुढवीए उवासंतरस्स सातिरेगं अद्धं ओगाहित्ता एत्थ णं अहेलोगस्स आयाममझे पण्णते, कहिणं भंते ! उडलोगस्स आयाममज्झे पण्णते ?, गोयमा ! उपि सणकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं हेहि भलोए कप्पे रिदृषिमाणे पत्थडे एत्थ णं उहृलोगस्स आयाममज्झे पपणत्ते । कहिन्नं भंते । तिरियलो गस्स आयाममजले पण्णत्ते, गोपमा ! जंबूहीवे २ मंदरस्स पवयस्स बहुमज्झदेसभाए इमीसे रयणप्पभाए &| पुढवीए उचरिमहेहिलेसु खुड्डागपयरेसु एत्थ णं तिरियलोगस्समझे अट्ठपएसिए रुपए पण्णत्ते, जओ ण इमाओK दीप अनुक्रम [५७०] 25645-15064-5-%-54-- AN-SCRECOCOCCAREAK ~121
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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