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आगम (०५)
[भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
शतक [१३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [४], मूलं [४७५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [४७५]
चेव ४, णो तहा महापवेसणतरा चेव १ नो आइन्नतरा चेव २ नो आउलतरा चेव ३ अणोयणलरा पेच ४, तेसुर्ण नरएसु नेरतिया छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरहएहिंतो महाकम्मतरा चेव १ महाकिरियतरा चेव २ महासवतरा चेव ३ महावयणतरा चेव ४ नो तहा अप्पकम्मतरा चेव १ नो अप्पकिरियतरा चेव २ नो अप्पासवतरा चेव ३ नो अप्पवेदणतरा चेव ४ अपहियतरा चेव १ अप्पजुत्तियतरा चेव २ नो तहा महष्टियतरा चेव १ नो महजुइयतरा चेव २। छट्ठीए णं तमाए पुढवीए एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से पण्णते,
ते गं नरगा अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएहिंतो नो तहा महत्तरा चेव महाविच्छिन्न.४ महप्पवेसणतरा चेव | दिआइन्न०४ तेसु णं नरएसु णं नेरतिया अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएहिंतो अप्पकम्मतरा चेव अप्पकिरि०४
नो तहा महाकम्मतरा चेव महाकिरिय ४ महड्डियतरा चेव महाजुइयतरा चेव नो तहा अप्पड्डियतरा चेव अप्पजुइयतरा चेव । छडीए णं तमाए पुढबीए नरगा पंचमाए धूमप्पभाए पु० नरएहितो महत्तरा चेच ४ नो तहा महप्पवेसणतरा चेव ४, तेसुण नरएम नेरतिया पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीएहितो महाकम्मतरा चेव ४ नो तहा अप्पकम्मतरा चेव ४ अप्पढियतरा चेव २ नो तहा महहियतरा चेव २, पंचमाए णं धूमप्पभाए | पुढवीए तिन्नि निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता एवं जहा छट्ठीए भणिया एवं सत्तवि पुढवीओ परोपरं भषणंति|४| ||जाव रयणप्पभंति जाव नो तहा महहियतरा चेव अप्पजुत्तियतरा चेव (सूत्रं ४७५)॥
'कह ण'मित्यादि, इह च द्वारगाथे कचिदू रश्येते, तद्यथा-"नेरइय १ फास २ पणिही ३ निरयंते ४ चेष लोय-12
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दीप अनुक्रम [५६९]
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