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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [२], मूलं [४७३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४७३] अभयदेवीया वृत्तिः२ दीप व्याख्या- उवव०१ पुच्छा, तहेव गोयमा ! पंचसुणं अणुत्तरविमाणेसु संखेजवित्थडे अणुत्तरविमाणे एगसमएणं जहप्रज्ञप्तिः एको वा दो वा तिन्नि वा उकोसेणं संस्खेजा अणुत्तरोववाइया देवा उववजंति एवं जहा गेवेज़विमाणेसु । १३ शतके २ उद्देशः संखेजवित्थडेसु नवरं किण्हपक्खिया अभवसिद्धिया तिसु अन्नाणेसु एए न उववज्जति न चयति न पन्नत्त-13 देवेष्वावाएसु भाणियवा अचरिमावि खोडिजंति जाव संखेजा चरिमा पं० सेसं तं, असंखेजवित्थडेसुवि एए नसोत्पादादि ॥६०२॥ भन्नति नवरं अचरिमा अस्थि, सेसं जहा गेवेजएसु असंखेजवित्थडेसु जाव असंखेजा अचरिमा प० । चोस- सू ४७३ ट्ठीए णं भंते ! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु किं सम्मट्टिी असुरकु-15 मारा उवव०मिच्छादिट्ठी एवं जहा रयणप्पभाए तिन्नि आलावगा भणिया तहा भाणियबा, एवं असंखेजवित्थडेसुवि तिन्नि गमगा, एवं जाव गेजवि. अणुत्तरवि० एवं चेव, नवरं तिसुवि आलावएसु मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्टी य न भन्नति, सेसं तं चेव । से नूर्ण भंते ! कण्हलेस्सा नीलजाब मुफलेस्से भवित्ता | कण्हलेस्सेसु देवेसु उचव०१, हंता गोयमा! एवं जहेव नेरइएमु पढमे उद्देसए तहेव भाणियचं, नीललेसाएवि Viजहेव नेरइयाणं जहा नीललेस्साए, एवं जाव पम्हलेस्सेसु सुक्कलेस्सेसु एवं चेव, नवरं लेस्सट्टाणेसु विमुज्म |माणेसु वि०२ सुक्कलेस्सं परिणमति सु०२ सुक्कलेस्सेसु देवेसु उववनंति, से तेणडेणं जाव उववजति । सेवं 8/ भिंते । सेवं भंते ! (सूत्रं ४७३) ॥१३-२॥ ॥६०२॥ WI 'कइविहे'त्यादि, 'संखेजविस्थावि असंखेजवित्थडावित्ति इह गाथा-"जंबुद्दीवसमा खलु भवणा जे तिर 648-4-6-56055 अनुक्रम [५६७] ~114~
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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