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________________ आगम (०५) [भाग-१०] "भगवती"-अंगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) शतक [१३], वर्ग [-], अंतर-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [४७०-४७२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५] अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [४७०-४७२] ॥५९७॥ दीप व्याख्या-1 लोभकसायी, सोइंदियउबउत्ताण उच्चति एवं जाव फार्सिदियोवउत्ता न उबद्दति, जहनेणं एको वा दो वा १२ शतके प्राप्तिः तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा नोइंदियोवउत्ता उबट्टति मणजोगी न उबदति एवं बहजोगीवि जहन्नेणं एको||१ उद्देशः अभयदेवी- वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा कायजोगी उपद्दति एवं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ।। इमीसे रत्नप्रभादि. या वृत्तिा भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजविस्थडेसु नरएसु केवइया नेरइया सू४७० ॥ पन्नत्ता ? केवड्या काउलेस्सा जाव केवतिया अणागारोवउत्ता पन्नत्ता केवतिया अणंतरोववन्नगा पन्नत्ता ११ केवइया परंपरोवचन्नगा पन्नत्ता २१ केवइया अणंतरोगाढा पन्नत्ता ३१ केवइया परंपरोगाढा प०४ ? केवइया अणंतराहारा पं०५१ केवतिया परंपराहारा ६ ? केवतिया अणंतरपजत्ता प०७१ केवतिया परंपरपज्जत्ता दापनत्ता ८१ केवतिया चरिमा प०९१ केवतिया अचरिमा पं०१०१, गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु संखेना नेरतिया प० संखेजा काउलेसा प० एवं जाय संखेजा सन्नी प०, असन्नी सिय अस्थि सिय नस्थि जइ अस्थि जहन्नेणं एको या दो वा तिन्नि वा उक्कोद सेणं संखेचा प०, संखेजा भवसिद्धी प० एवं जाव संखेवा परिग्गहसन्नोवउत्ता प० इस्थिवेदगा नस्थि पुरि सवेदगा नत्थि संखेजा नपुंसगवेदगा प०, एवं कोहकसायीवि मानकसाई जहा असन्नी एवं जाव लोभक० ॥५९७॥ &ा संखेजा सोइंदियोवउत्ता प० एवं जाच फासिंदियोवउत्ता नो इंदियोवउत्ता जहा असन्नी संखेजा मणजोगी तप० एवं जाव अणागारोवउत्ता, अणंतरोववन्नगा सिय अस्थि सिय नस्थि जइ अस्थि जहा असन्नी, संखेजा अनुक्रम [५६३-५६६] रत्नप्रभा-आदि नरकेषु उत्पादः ~104
SR No.035010
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 10 Bhagavati Mool evam Vrutti Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size111 MB
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