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आगम [०५]
[भाग-९] “भगवती"-अंगस
शतक [११], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [९], मूलं [४१७-४१८] + गाथा पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [०५, अंगसूत्र- [०५] "भगवती" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
सूत्रांक [४१७-४१८]
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गाथा
दाई अनमन्नपुट्ठाई जाय घडताए चिट्ठति, हंता अस्थि । अस्थि णं भंते ! लघणसमुदवाई सपनाइंषि अवन्ना*इंपि सगंधाई अगंधाईपि सरसाइंपि अरसाइंपि सफासाइंपि अफासाइंपि अन्नमन्नवदाई अनमन्नपुट्ठाई जाव/
घडताए चिट्ठति ?, हंता अस्थि । अस्थि णं भंते ! धायसंडे दीवे दवाई सवनाईपि एवंचेव एवं जावा सयंभूरमणसमुझे ? जाव हंता अस्थि । तए णं सा महतिमहालिया महवपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हडतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदह नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता जामेव |दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पहिगया, तए णं हस्थिणापुरे नगरे सिंघाडगजावपहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स | एवमाइक्खइ जाव परूबेइ-जन्नं देवाणुप्पिया ! सिवे रायरिसी एवमाइक्खा जाव परूवेह-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणे जाव समुद्दा य तं नो इणढे समढे, समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खहजाच | का परूवेइ-एवं खलु एयरस सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेणं तं चेव जाच भंडनिक्खेवं करेइ भंडनिक्वेवं
करेत्ता हस्थिणापुरे नगरे सिंघाडग जाव समुद्दा य, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयमदं सोचा | निसम्म जाव समुद्दा य तपणं मिच्छा, सभणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ०-एवं खलु वुद्दीवादीया दीवा लवणादीया समुद्दा तं चेव जाव असंखेजा दीवसमुदा पन्नत्ता समणासो! । तए णं से सिवे रायरिसी बहुजणस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेदसमावन्ने कलुससमावन्ने | जाए यावि होस्था, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स संखियस्स कंखियस्स जाव कलुससमाव
दीप
अनुक्रम [५०६-५०८]
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शिवराजर्षि-कथा
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