________________
आगम (०५)
[भाग- ८] “भगवती"-अंगसूत्र-५/१(मूलं+वृत्ति:)
शतक [२], वर्ग [-], अंतर्-शतक [-], उद्देशक [१], मूलं [९२] मुनि दीप रत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [०५], अंग सूत्र - [०५] "भगवती मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१२]
दीप अनुक्रम [११३]
॥भंते । तुभ अंतिए केवलिपनत्तं धम्म निसामेत्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध । तए णं समणे || २ शतक प्रज्ञप्तिः भगवं महावीरे खंदयस्स कचायणस्सगोत्तस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ, धम्म-8
उद्देशः १ अभयदेवी
कहा भाणियब्धा । तए णं से खंदए कचायणस्सगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोचा यावृत्तिः१
रितं सू९१ निसम्म हहुतुढे जाव हियए उट्ठाए उठेइ २ समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ ॥१२॥
है एवं वदासी-सदहामिण भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंध पावयणं, रोएमि | |भंते ! निग्गंध पावयां, अन्भुट्ठमि णं भंते ! निग्गंधं पा०, एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते । असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपहिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुन्भे बद-12 हत्तिक? समणं भगवं महावीरं चंदति नमंसति २ उत्तरपुरच्छिम दिसीभायं अवकमइ २ तिदंडं च कुंडियं ४ |च जाव घाउरसाओ य एगते एडेइ २ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद २ समणं भगवंट महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ करेइत्ता जाव नमंसित्ता एवं वदासी-आलित्ते णं भंते! लोए पलिते णं भलो. आ. प. भं० लो जरामरणेण य, से जहानामए केइ गाहावती आगारंसि ॥२०॥ | झियायमाणसिजे से तत्थ भंडे भवइ अप्पसारे मोल्लगरूए तंगहाय आयाए एगंतमंतं अवकमइत्ति, एस ||मे निस्थारिए समाणे पच्छा पुरा हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियत्साए भविस्सइ, एवामेव देवाणुपिया ! मज्झवि आया एगे भंडे इढे कंते पिए मणुन्ने मणामे घेजे वेसासिए संमए बहुमए अणुमए
...अब मूल-संपादने एक सामान्य मुद्रण-दोष: दृश्यते (यहाँ दायीं तरफ ऊपर सू ९१ लिखा है, वहां सू ९२ होना चाहिए, क्योंकि सूत्र के आखिर में ९२ ही लिखा है, मूल सम्पादनमें यह भूल का कारण है---सूत्र ९० को दो भागोमे बांटना, ऐसे दो भाग “आगममञ्जूषा" में भी नहीं है)
स्कंदक (खंधक) चरित्र
~253