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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], ------------------- मूलं [१५६ से १५९] + ९३ गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१५६१५९] गाथा: १-९३ % चाला सरण्णा लक्षणवंजणगुणोववेा माणुम्माणपमाणपडिपुग्णसुजायसवंगसुंदरंगा ससिसोमागारकंतपियदसणा अमरिसणा पयंडदंडप्पभारा गंभीरदरसणिजा तालद्धओविद्धगरुलकेऊमहाधणुविकट्टया महासत्तसारा दुद्धरा धणुद्धरा धीरपुरिसा जुद्धकित्तिपुरिसा विउलकुलसमुन्भवा महारयणविद्दाडगा अद्धभरहसामी सोमा रायकुलवंसतिलया अजिया अजियरहा हलमुसलकणकपाणी संखचक्कगयसत्तिनंदगधरा पवरुजलसुक्तविमलगोत्युभतिरीडधारी कुंडल उबोइयाणणा पुंडरीयणयणा एकावलिकण्ठलइयवच्छा सिरिवच्छसुलछणा वरजसा सम्बोउयसुरभिकुसुमरचितपलंबसोभंतकंतविकसंतविचित्तवरमालरइयवच्छा अवसयविभत्तलक्खणपसस्थसुंदरविरइयंगमंगा मत्तगयवरिंदललियविक्कमविलसियगई सारयनवयणियमहुरगंभीरकुंचनिग्योसदुंदुभिसरा कडिसुतगनीलपीयकोसेजवाससा पवरदित्ततेया नरसीहा नरवई नरिंदा नरवसहा मरुयवसभकप्पा अमहियरायतेयलच्छीए दिपमाणा नीलगपीयगवसणा दुवे दुवे रामकेसवा भायरो होत्था, तंजहा-तिविद् जाव कण्हे अयले जाव रामे यावि अपच्छिमे ॥ ५३ ॥ एएसि ण णवण्हं बलदेववासुदेवाणं पुखभविया नव नामधेडा होत्या, तंजहा-विस्समूई पक्षयए धणदत्त समुदत्त इसिवाले। पियमित्त ललियमिते पुणवसू गंगदत्ते य ॥५४॥ एयाई नामाई पुत्वभवे आसि वासुदेवाणं । एतो चलदेवाणं जहाकम कित्तइस्सामि ॥५५॥ विसनंदी य सुषन्धू सागरदचे असोगललिए य । वाराह धम्मसेणे अपराइय रायललिए य ॥५६॥ एएर्सि नवण्ई बलदेववासुदेवाणं पुष्यभविया नव धम्मायरिया होत्था, संजद्दा-संभूय सुभद सुदंसणे य सेयंस कण्ह गंगदत्ते आसागरसमुदनामे दुमसेणे यणवमए ॥५७॥ एए धम्मायरिया कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । पुच्चमवे एसिं जत्य नियाणाई कासीय ॥५८॥ एएर्सि नवण्हं वासुदेवाणं पुन्वभवे नय नियाणभूमिओ होत्या, तंजहा-महरा य० हथिणाउरं च ॥ ५९॥ एतेसि ण नवदं वासुदेवाणं नव % - प्रत अनुक्रम [२५४-३८३] 6-2548 SNERural) ~316~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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