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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], ---------------- ----------- मूलं [१५५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] "समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: १५५ स हननसं प्रत स्थानानि. श्रीसमवा-IN यांगे श्रीअमय वृत्तिः ॥१४९॥ सूत्रांक [१५५]] प्रत अनुक्रम [२५३] ACCIA व अढि णेव छिराणेव पहारू जे पोग्गला अणिट्ठा अकंता अप्पिया अणाएजा असुभा अमणुण्णा अमणामा अमणाभिरामा ते तेसिं असंघयणचाए परिणमंति, असुरकुमारा णं भंते ! किसंघयणा पन्नत्ता?, गोयमा! छण्डं संघयणाणं असंघयणी णेवट्ठी णेव छिरा व पहारू जे पोग्गला इट्टा कंता पिया मणुण्णा मणामा मणाभिरामा ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति, एवं जाव थणियकुमाराणं, पुढचीकाइयां णं भंते ! किंसंघयणी पन्नत्ता ?, गोयमा ! छेवट्ठसंघयणी प०, एवं जाव संमुच्छिमपश्चिन्दियतिरिक्खजोणियत्ति, गम्भवतंतिया छव्विहसंघयणी, समुच्छिममणुस्सा छेवट्ठसंघयणी गब्भवक्कंतियमणुस्सा छब्विहे संघयणे प०, जहा अमरकुमारा तहा वाणमंतरजोइसियवेमाणिया य॥ कविहे गं भंते! संठाणे पन्नते. गोयमा! छबिहे संठाणे ५०,०समचउरंसे १ णिग्योहपरिमण्डले २ साइए ३ वामणे ४ खुजे ५ हुंडे ६, रइया पं भंते ! किंसंठाणी प०१, गोयमा ! हुंडसंठाणी प०, असुरकुमारा किंसंठाणी ५०१, गोयमा ! समचउरंससंठाणसंठिया प०, एवं जाव थणियकुमारा, पुढवी मसूरसंठाणा ५०, बाऊ थिव्यसंठाणा पन्नत्ता, तेऊ सूइकलावसंठाणा पन्नत्ता, वाऊ पडागासंठाणा पन्नत्ता, वणस्सई नाणासठाणसंठिया पन्नत्ता, वेइंदियतेईदियचउरिदियसमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खा हुंडसंठाणा प०, गम्भववंतिया छब्बिहसंठाणा समुच्छिममणुस्सा हुंडसंठाणसंठिया पन्नत्ता, गन्भवतंतियाणं मणुस्साणं छविहा संठाणा पन्नत्ता, जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरजोइसियवेमाणियावि ॥ (सूत्र१५५) M 'काविहे णमित्यादि, दण्डकत्रयं कण्ठ्यं, नवरं संहननमस्थिवन्धविशेषः, मर्कटस्थानीयमुभयोः पार्थयोरस्थि नाराचं। ऋषभस्तु पट्टः वजं कीलिका, वज्रश्च ऋषभश्च नाराचं च यत्रास्ति तद्ववर्षभनाराचसंहननं, मर्कटपट्टकीलिकारचना-18 SOSANSARACK ॥१४॥ aitincturary.orm ~309~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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