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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [३०], ------------------------- ----- मूल [३०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: ३० समवायाध्य. प्रत श्रीसमवा यांगे श्रीअमय वृतिः 7-BACCES सूत्रांक [३०] SHRSt% प्रत अनुक्रम [६४-९९] सहीहेउं, महामोई पकुब्वइ ॥ ३१ ॥ २७ ॥ जे अ माणुस्सए मोए, अदुवा पारलोइए । तेऽतिप्पयतो बासयर, महामोई परध्वद ॥ ३२ ॥२८॥हड्डी जुई जसो वण्णो, देवाण बलवीरियं । सेर्सि अवण्णवं पाले, महामोह पकुष्यद ॥ १३ ॥२९॥ अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे व गुज्झगे । अण्णाणी जिणपूयट्टी, महामोहं पकुवह ॥ ३४ ॥३०॥ थेरे में मैडियपुत्ते तीस यासाई सामण्णपरियाय पाउणित्ता सिद्धे बुद्धे जाव सन्चदुक्खप्पहीणे, एगमेगे णं अहोरते तीसमुहते मुहुत्तीर्ण १०, एएसि णं तीसाए मुहुत्ताणं तीसं नामधेआ प० त०-डे सत्ते मित्ते वाऊ सुपीए ५ अमिचंदे माहिदे पलचे मे सथे १० आणंदे विजए विस्ससेणे पायावच्चे उवसमे १५ ईसाणे तठे माविअप्पा वेसमणे वरुणे २० सतरिसमे गंधम्बे अग्गिवेसायणे पातवे आवत्ते२५ तडवे भूमहे रिसभे सम्वसिद्धे रक्खसे ३०, अरे णं अरहा तीसं पणुई उहूं उच्चत्तेणं होत्या, सहस्सारस्स णं देविंदस्स देवरणो तीस सामाणियसाहस्सीओ प०, पासे णं अरहा तीस वासाई अगारवासमझे वसित्ता अगारामो बणगारियं पच्चइए, समणे भगर्व महावीरे तीस वासाई अगारवासमझे वसित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वाइए, रयणप्पभाए णे पुढधीए तीस निरयावाससयसहस्सा प०, इमीसे थे रयणप्पभाए पुढवीए मत्थेगइयाण नेरइयाण तीस पलिओवमाई ठिई ५०, महेसत्तमाए पुढवीए पत्थेगइयाण नेरहयाणं तीस सागरोवमाई ठिई प०, सरकुमाराण देवाणं भरपेगइयाणे तीसं पलिभोवमाई ठिई प०, उपरिमउवरिमगेवेजयाण देवाणे जहण्णेणं तीस सागरोवमाई ठिई प०, जे देवा उवरिममज्झिमगेवेजएसु विमाणेसुदेवत्ताए उववण्णा तेसि ण देवाणं उन्कोसेणे तीस सागरोवमाई ठिई प०.से णं देवा तीसाए भद्धमासेहिमाणमति वा पाणमति या उस्ससेति वा मीससंति वा, तेसि णं देवाणं तीसाए वाससहस्सेहिं आहारहे समुप्पाइ, संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तीसाप 4 ॥५१॥ - 8-544 ~113~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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