________________
आगम (०४)
[भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:)
समवाय [२७], ------------------------------------ मूल [२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
२८ सम
का वाया.
प्रत
सूत्राक
[२७]
श्रीसमवा- माषाढ्याः सत्कैरनुलैः सह सप्तविंशतिरजुलानि भवन्ति, निश्चयतस्तु कर्कसक्रान्तेरारभ्य यत्सातिरेकैकविंशति-
यांग मातम दिनं तत्रोक्तरूपा पौरुषीच्छाया भवति ॥ २७ ॥ श्रीअभय
अट्ठावीसविहे आयारपकप्पे प० त०-मासिआ आरोवणा सपंचराईमासिया आरोवणा सदसराइमासिआ आरोवणा एवं चेव
दोमासिआ आरोवणा सपंचराईदोमासिया आरोवणा एवं तिमासिआ आरोवणा चउमासिया आरोवणा उवघाइया आरोवणा ॥४७॥ अणुवघाइया आरोवणा कसिणा आरोवणा अकसिणा आरोवणा एतावता आयारपकप्पे एताव ताव आयरियचे, भवसिद्धियाणं
जीवाणं अत्यंगइयाणं मोहणिजस्स कम्मस्स अट्ठावीसं कम्मंसा संतकम्मा प० तं०-सम्मत्तवेअणिनं मिच्छत्तवेयणिजं सम्ममिछत्तवेयणिजं सोलस कसाया णव णोकसाया, आमिणिबोहियणाणे अट्ठावीसइविहे प० त०-सोइंदियअत्यावग्गहे चक्विंदियअत्थावग्गहे पाणिदियअस्थावग्गहे जिभिदियअत्थावग्गहे फार्सिदियअत्थावग्गहे णोइंदियअत्थावग्गहे सोइंदियवंजणोग्गहे पाणिदियवंजणोग्गहे जिभिदियवंजणोग्गहे फार्सिदियवंजणोग्गहे सोर्तिदियईहा चक्विदियईहा पाणिदियईहा जिम्भिदियईहा फार्सिदियईहा णोइंदियईहा सोतिंदियावाए चक्खिदियावाए पाणिदियावाए जिभिदियावाए फार्सिदियावाए णोइंदियावाए सोइंदिअधारणा चक्खिदियधारणा घाणिदियधारणा जिन्मिदियधारणा फासिदियधारणा णोइंदियधारणा, ईसाणे जे कप्पे अट्ठावीसं विमाणावाससयसहस्सा प०, जीवे णं देवगइम्मि बंधमाणे नामस्स कम्मस्स अट्ठावीसे उत्तरपगडीओ णिबंधति, त०-देवगतिनाम पंचिंदियजातिनाम वेउल्वियसरीरनामं तेयगसरीरनाम कम्मणसरीरनाम
प्रत
अनुक्रम
[६१]
॥४७॥
awraturasurary.com
~105~