SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०२) [भाग-4] “सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः ) श्रुतस्कंध [२.], अध्ययन [१], उद्देशक [-], मूलं [१५], नियुक्ति: [१५७] प्रत सूत्रांक [१५]] eseseseesercemesedeseseaesesed तजिजमाणस्स वा ताडिजमाणस्स वा परियाविजमाणस्स वा किलामिजमाणस्स वा उद्दविजमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इचेवं जाण सबे जीवा सके भूता सबे पाणा सच्चे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा आउद्दिजमाणा वा हम्ममाणा वा तजिजमाणा वा ताडिज्जमाणा वा परियाविजमाणा वा किलामिज्जमाणा वा उद्दविजमाणा वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति, एवं नया सवे पाणा जाव सत्ता ण हतबा ण अज्जावेयवा ण परिघेतबा ण परितावेषया ण उद्दवेयवा ।। से बेमि जे य अतीता जे य पटुप्पन्ना जे य आगमिस्सा अरिहंता भगवंता सच्चे ते एवमाइक्वंति एवं भासंति एवं पण्णवंति एवं परूवंति-सबे पाणा जाव सत्ता ण हंतवा ण अजावयचा ण परिघेतवा ण परितावेयवा ण उद्दवेयबा एस धम्मे धुचे णीतिए सासए समिच लोग खेयन्नहिं पवेदिए, एवं से भिक्खू विरते पाणातिवायातो जाव विरते परिग्गहातो णो दंतपक्वालणेणं दंते पक्खालेज्जा णो अंजणं णो वमणं णो धूवणे णो तं परिआविएज्जा ॥ से भिक्खू अकिरिए अलूसए अकोहे अमाणे अमाए अलोहे उवसंते परिनिबुडे णो आसंसं पुरतो करेजा इमेण मे दिवेण वा सुएण वा मएण वा विनाएण वा इमेण वा सुचरियतवनियमवंभचेरचासेण इमेण वा जायामायावुत्तिएणं धम्मेणं इओ चुए पेचा देवे सिया कामभोगाण वसवत्ती सिद्धे चा अदुक्खममुभे एथवि सिपा एस्थवि णो सिया । से भिक्खू सद्देहिं अमुच्छिए स्वेहिं अमुच्छिए गंधेहिं अमुच्छिए रसेहिं अमुच्छिए फासेहिं अमुच्छिा विरण दीप अनुक्रम [६४७] wwwsaneiorary.om पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] "सुत्रकृत्" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: ~124~
SR No.035004
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 04 Sootrakrut Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages392
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy