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आगम (०१)
[भाग-2] “आचार"मूलं "-अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
श्रुतस्कंध [२.], चुडा [३], अध्ययन [-], उद्देशक [-], मूलं [१७९], नियुक्ति: [३४१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित..आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] “आचार" "मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१७९]
दीप
अणायाणभंडमत्तनिक्सेवणासमिए, केवली वूया-आयाणभंङमत्तनिक्षेषणाअसमिए से निर्माथे पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई अभिहणिज्जा वा जाव उदविज वा, तम्हा आयाणभंडमत्तनिक्वेवणासमिए से निर्माथे, नो आयाणभंडनिक्खेवणाअसमिएत्ति चउत्था भावणा ४ । अहावरा पंचमा भावणा-आलोइयपाणभोयणभोई से निग्गथे नो अणालोइयपाणभोयणभोई, केवली बूया-अणालोईयपाणभोयणभोई से निगथे पाणाणि वा ४ अभिहणिज वा जाव उद्दविज वा, तम्हा आलोइयपाणभोयणभोई से निरगंथे नो अणालोईयपाणभोयणभोईत्ति पंचमा भावणा ५ । एयावता महव्वए सम्मं कारण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए आणाए आराहिए यावि भवइ, पढमे भंते ! महब्बए पाणाइवायाओ वेरमणं ॥ अहावरं दुषं महब्वयं पञ्चक्खामि, सव्वं मुसाबार्य वइदोस, से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सर्व गुसं भासिज्जा नेवनेणं मुसं भासाविज्जा अन्नपि मुसं भासंतं न समणुमन्निज्जा तिविहं तिविहेणं मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते ! पडिकमामि जाव वोसिरामि, तस्सिमाओ पंच मावणाओ भवंति-तथिमा पढमा भावणा-अणुवीइभासी से निग्गंथे नो अणणुवीइभासी, केवली चूया०-अणणुवीइभासी से निगंथे समावजिज मोसं वयणाए, अणुवीइभासी से निम्नथे नो अणणुबीइभासित्ति पढमा भावणा । अहावरा दुचा भावणा-कोई परियाणइ से निग्गंथे नो कोहणे सिया, केवली बूयाकोहपत्ते कोहत्तं समावइजा मोसं वयणाए, कोहं परियाणइ से निग्गंथे न य कोहणे सियत्ति दुचा भावणा । अहावरा तथा भावणा-लोभ परियाणा से निगंथे नो अ लोभणए सिया, केवली बूया-लोभपत्ते लोभी समावइजा मोसं वयणाए, लोभं परियाणइ से निगाथे नो य लोभणए सियत्ति तथा भावणा । अहवरा चउत्था भावणा-भयं परिजाणइ से
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