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________________ आगम (०१) [भाग-2] “आचार"मूलं "-अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [७], उद्देशक [१], मूलं [१५७], नियुक्ति : [३१९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित..आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] “आचार" "मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१५७] दीप अनुक्रम [४९१] छिना जे तेण सयमेसित्तए पीढे वा फलए वा सिज्जा वा संधारए वा तेण ते साहम्मिए अन्नसंभोइए समणुन्ने उबनिमंतिजा नो वर्ण परवंडियाए ओगिझिय लवनिमंतिज्ना ॥से आगंतारेसु वा ४ जाव से किं पुण तत्धुम्गहंसि एवोग्राहियंसि जे तत्थ गाहावईण वा गादा० पुत्ताण वा सूई वा पिप्पलए वा कण्णसोहणए वा नहच्छेयणए वा तं अप्पणो एगस्स अट्टहाए पादिहारिवं जाइता नो अन्नममस्स दिज वा अणुपइज वा, सयंकरणितिक?, से तमायाए तत्थ गरिछज्जा २ पुवामेव उत्ताणए हत्ये कट्ट भूमीए वा उवित्ता इमं खलु २ ति आलोइला, नो चेक णं सर्व पाणिणा परपाणिसि पञ्चप्पिणिजा ॥ (सू० १५७) पूर्वसूत्रवत्सर्व, नवरमसाम्भोगिकान पीठफलकादिनोपनिमन्त्रयेद, यतस्तेषां तदेव पीठिकादिसंभोग्य नाशनादीनि ॥ किञ्च-तस्मिन्नवग्रहे गृहीते यस्तत्र गृहपत्यादिको भवेत् तस्य सम्बन्धि सूच्यादिकं यदि कार्यार्थमेकमात्मानमुद्दिश्य गृह्णीयात् तदपरेषां साधूनां न समर्पयेत् , कृतकार्यश्च प्रतीपं गृहस्थस्यैवानेन सूत्रोकेन विधिना समर्पयेदिति ॥ अपि च से नि० से जं. उपगई जाणिना अणंतरहियाए पुढवीए जाव संताणए तह० जग्गई नो गिहिजा बा २ ॥ से भि से जं पुण उगह चूर्णसि वा ४ तह अंतालिक्खजाए दुव्बद्धे जाव नो उगिहिजा बा २॥ से मि० से ज० कुलियसि वा ४ जाव नो उगिहिज वा २ ॥ से नि० खंधसि वा ४ अन्नयरे बा तह ० जाब नो उग्गहं उगिणिहज वा २ ॥ से भि० से जं. पुण ससागारियं० सखुपसुभत्तपाणं नो पन्नस्स निक्खमणपवेसे जाव धम्माणुओगचिताए, सेवं नच्चा तह उपस्सए ससागारिए० नो उबगाई उगिहिजा या २॥ से मि० से जं. गाहावइकुलस्स मज्झमज्ोणं गंर्नु पंधे पडिबद्ध वा नो ~522
SR No.035002
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 02 Aachaar Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages586
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size117 MB
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