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आगम (०१)
[भाग-2] “आचार"मूलं "-अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [२], उद्देशक [१], मूलं [९१], नियुक्ति: [३०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित..आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] “आचार" "मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
प्रत
सूत्राक
[९१]
दीप
से मिक्लू वा० से ० ससागारियं सागणियं सउद्यं नो पन्नस्स निक्खमणपवेसाए जावऽणुचिताए तहपगारे उबस्सए
नो ठा०॥ (सू०९१) स भिक्षुर्य पुनरेवंभूतं प्रतिश्रयं जानीयात् , तद्यथा-ससागारिकं साग्निकं सोदक, तत्र स्वाध्यायादिकृते स्थानादि न विधेयमिति ॥ तथा
से मिक्सू वा० से जं० गाहावहकुलस्स मामजोणं गंतु पंथए पडिबद्धं वा नो पन्नस्स जाव चिंताए तब उ० नो ठा०॥ (सू०९२) यस्योपाश्रयस्य गृहस्थगृहमध्येन पन्थास्तत्र बलपायसम्भवात्तत्र न स्थातव्यमिति ॥ तथा
से भिक्खू वा० से जं०, इह खलु गाहावई वा० कम्मकरीओ वा अनमन्नं अकोसंति या जाप उर्वति वा नो पन्नस्स०, सेवं नचा तहप्पगारे उ० नो ठा० ॥ (सू० ९३) से मिक्खू वा० से जं पुण० इह खलु गाहाबई या सम्मअरीओ बा अन्नमन्त्रस्म गार्य तिलेण वा नव०प० बसाए वा अन्भंगेति वा मक्खेंति वा नो पण्णस्स आप तहप्प. उव० नो ठा० (सू० ९४) से मिक्सू वा० से जं पुण-इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ अनमनस्स गायं सिणाणेण वा कलु. चु० ५० आपसंति वा पसंति वा उज्वलंति वा उब्बदिति वा नो पन्नस्स० (सू०९५) से भिक्खू० से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा, इह खलुगाहावती वा जाव कम्मकरी वा अण्णमण्णस्स गार्य सीओदग० उसिणो० उच्छो० पहोयंति सिंचंति सिणावंति वा नो पन्नस्स जाव नो ठाणः ॥ (सू० ९६)
अनुक्रम [४२५]
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