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________________ आगम (०१) [भाग-2] “आचार"मूलं "-अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन [६], उद्देशक [५], मूलं [१९५],नियुक्ति: [२५२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित..आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-०१] “आचार" "मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१९५] दीप अणुवीइ भिक्खू धम्ममाइक्खमाणे नो अत्ताणं आसाइजा नो परं आसाइजा नो अन्नाइं पाणाइं भूयाई जीवाई सत्ताई आसाइजा से अणासायए अणासायमाणे वज्झमाणाणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं जहा से दीवे असंदीणे एवं से भवइ सरणं महामुणी, एवं से उट्टिए ठियप्पा अणिहे अचले चले अबहिल्लेसे परिव्वए संक्खाय पेसलं धम्म दिट्रिमं परिनिव्वुडे, तम्हा संगति पासह गंथेहिं गढिया नरा विसन्ना कामकता तम्हा लूहाओ नो परिवित्तसिज्जा, जस्सिमे आरंभा सव्वओ सव्बप्पयाए सुपरिन्नाया भवंति जेसिमे लूसिणो नोपरिवित्तसंति, से वंता कोहं च माणं य मायं च लोभं च एस तुट्टे वियाहिए त्तिबेमि (सू० १९५) स भिक्षुर्मुमुक्षुरनुविचिन्त्य-पूर्वापरेण धर्म पुरुष वाऽऽलोच्य यो यस्य कथनयोग्यस्तै धर्ममाचक्षाणः आजिति मयोदया यथाऽनुष्ठानं सम्यग्दर्शनादेः शातना आशातना तया आत्मानं नो आशातयेत्, तथा धर्ममाचक्षीत य. थाऽऽस्मन आशातना न भवेत्, यदिवाऽऽत्मन आशातना द्विधा-द्रव्यतो भावत्तश्च, द्रव्यतो यथाऽऽहारोपकरणा-| दे.व्यस्य कालातिपातादिकृताऽऽशातना-बाधा न भवति तथा कथयेद् , आहारादिद्रव्यवाधया च शरीरस्यापि पीडा अनुक्रम [२०८] 4 % ~228~
SR No.035002
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 02 Aachaar Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages586
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size117 MB
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