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________________ आगम (०१) [भाग-1] “आचार” – अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन [१], उद्देशक [६], मूलं [१२], नियुक्ति: [१६३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित.....आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१२] श्रीआचारावृत्तिः (शी०) अध्ययनं १ उद्देशकः६ RECA ॥७२॥ दीप अनुक्रम [५३] मोहे एस खलु मारे एस खलु णरए, इच्चत्थं गहिए लोए जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहिं तसकायसमारंभेण तसकायसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति (सू० ५२) पूर्ववत् व्याख्येय, यावत् 'अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइत्ति ॥ यानि कानिचित्कारणान्युद्दिश्य वसवधः क्रियते तानि दर्शयितुमाह से बेमि अप्पेगे अच्चाए हणंति, अप्पेगे अजिणाए वहति, अप्पेगे मंसाए वहति, अप्पेगे सोणियाए वहंति, एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छाए पुच्छाए वालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए णहाए पहारुणीए अट्ठीए अटिर्मिजाए अट्ठाए अणटाए, अप्पेगे हिंसिंसु मेत्ति वा वहति अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहति अप्पेगे हिंसिस्संति मेत्ति वा वहति (सू० ५३) । तदहं ब्रवीमि यदर्थं प्राणिनस्तदारम्भप्रवृत्तव्योपाद्यन्त इति, अप्येकेऽयै मन्ति, अपिरुत्तरापेक्षया समुच्चयार्थः, 'एके' केचन तदर्थित्वेनातुराः, अर्च्यतेऽसावाहारालङ्कारविधानरित्यर्चा-देहस्तदर्थं व्यापादयन्ति, तथाहि-लक्षणवत्पुरु RE ॥७२॥ *श्र [155]
SR No.035001
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 01 Aachaar Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages314
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size64 MB
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